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बस इसलिए यह आतमा निजभाव का कर्ता कहा । अन्य सब पुद्गलकरमकृत भाव का कर्ता नहीं ॥ ८२ ॥ हे भव्यजन! तुम जान लो परमार्थ से यह आतमा । निजभाव को करता तथा निजभाव को ही भोगता ॥ ८३ ॥ अनेक विध पुद्गल करम को करे भोगे आतमा । व्यवहारनय का कथन है यह जान लो भव्यात्मा ॥८४ ॥ पुद्गल करम को करे भोगे जगत में यदि आतमा । द्विक्रिया अव्यतिरिक्त हों संमत न जो जिनधर्म में ॥८५ ॥ यदि आतमा जड़भाव चेतनभाव दोनों को करे । तो आतमा द्विक्रियावादी मिथ्यादृष्टि अवतरे ॥ ८६ ॥