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इन आस्रवों की अशुचिता विपरीतता को जानकर । आतम करे उनसे निवर्तन दुःख कारण मानकर ॥ ७२ ॥
मैं एक हूँ मैं शुद्ध निर्मम ज्ञान दर्शन पूर्ण हूँ । थित लीन निज में ही रहूँ सब आस्रवों का क्षय करूँ ॥ ७३ ॥ ये सभी जीवनिबद्ध अध्रुव शरणहीन अनित्य हैं । दुःखरूप दुखफल जानकर इनसे निवर्तन बुध करें ॥ ७४ ॥
करम के परिणाम को नोकरम के परिणाम को । जो ना करे बस मात्र जाने प्राप्त हों सद्ज्ञान को ॥ ७५ ॥ परद्रव्य की पर्याय में उपजे ग्रहे ना परिणमें । बहुभाँति पुद्गल कर्म को ज्ञानी पुरुष जाना करें ॥ ७६ ॥