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उस ही तरह रंग देखकर जड़ कर्म अर नोकर्म का । जिनवर कहें व्यवहार से यह वर्ण है इस जीव का ।। ५९ ।।
इस ही तरह रस गंध तन संस्थान आदिक जीव के । व्यवहार से हैं कहें वे जो जानते परमार्थ को ॥ ६० ॥
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जो जीव हैं संसार में वर्णादि उनके ही कहे । जो मुक्त हैं संसार से वर्णादि उनके
हैं
नहीं ॥ ६१ ॥
वर्णादिमय ही जीव हैं तुम यदी मानो इसतरह । तब जीव और अजीव में अन्तर करोगे किसतरह ? ॥ ६२ ॥ मानो उन्हें वर्णादिमय जो जीव हैं संसार में । तब जीव संसारी सभी वर्णादिमय हो जायेंगे ॥ ६३ ॥