Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ (१६) परभाव को पर जानकर परित्याग उनका जब करे । तब त्याग हो बस इसलिए ही ज्ञान प्रत्याख्यान है ॥ ३४ ॥ जिस तरह कोई पुरुष पर को जानकर पर परित्यजे । बस उसतरह पर जानकर परभाव ज्ञानी परित्यजे ॥ ३५ ॥ मोहादि मेरे कुछ नहीं मैं एक हूँ उपयोगमय । है मोह-निर्ममता यही वे कहें जो जाने समय ।। ३६ ॥ धर्मादि मेरे कुछ नहीं मैं एक हूँ उपयोगमय । है धर्म-निर्ममता यही वे कहें जो जाने समय ।। ३७ ॥ मैं एक दर्शन-ज्ञानमय नित शुद्ध हूँ रूपी नहीं। ये अन्य सब परद्रव्य किंचित् मात्र भी मेरे नहीं ॥ ३८ ॥

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