Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ (१०) सब की सुनी अनुभूत परिचित भोग बंधन की कथा । पर से पृथक् एकत्व की उपलब्धि केवल सुलभ ना ॥ ४ ॥ निज विभव से एकत्व ही दिखला रहा करना मनन । पर नहीं करना छलग्रहण यदि हो कहीं कुछ स्खलन ॥ ५ ॥ न अप्रमत्त है न प्रमत्त है बस एक ज्ञायकभाव है । इस भाँति कहते शुद्ध पर जो ज्ञात वह तो वही है ।। ६ ।। दृग ज्ञान चारित जीव के हैं - यह कहा व्यवहार से । ना ज्ञान दर्शन चरण ज्ञायक शुद्ध है परमार्थ से ॥ ७ ॥ अनार्य भाषा के बिना समझा सके न बस त्यहि समझा सके ना व्यवहार बिन अनार्य को । परमार्थ को ॥ ८ ॥

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