Book Title: Samaysara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ (१३) मैं कर्म हूँ नोकर्म हूँ या हैं हमारे ये सभी I यह मान्यता जबतक रहे अज्ञानि हैं तबतक सभी ॥ १९ ॥ सचित्त और अचित्त एवं मिश्र सब पर द्रव्य ये । हैं मेरे ये मैं इनका हूँ ये मैं हूँ या मैं हूँ वे ही ॥ २० ॥ काल में । काल में ॥ २१ ॥ हम थे सभी के या हमारे थे सभी गत हम होंयगे उनके हमारे वे अनागत ऐसी असंभव कल्पनाएँ मूढजन नित ही करें । भूतार्थ जाननहार जन ऐसे विकल्प नहीं करें ॥ २२ ॥ अज्ञान - मोहित मती बहुविध भाव से संयुक्त जिय । अबद्ध एवं बद्ध पुद्गल द्रव्य को अपना कहें ॥ २३ ॥ -

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