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समय
है सो तीर्थभूमिका है जातें जाकै आत्मानुभवका अभ्यास भया सोही परमतीर्थस्थान ग्रहण कीया। अनुभवकी जो रसा कहिए पृथ्वी सोही जगतमें पोरसा कहावै है (समस्त वांछित आत्मानुभवतें सिद्ध होय है) अनुभव है सोअधोरसा कहिए अधोलोकतै निकासि ऊर्द्ध लोककू शीघ्र ले जानेवाला है । अनुभवमें रमना है सोही कामधेनु चित्रावेलि है, अनुभवका खाद । है सो पंचअमृतका ग्रास है । अनुभवही कर्मनिकू तोरे है अर अनुभवही परमात्मरूपसे प्रीतिकू * जोडे है तातै अनुभव समान और कोऊ धर्म नही है ॥ १९ ॥ इति अनुभव वर्णन ॥ 5 ॥ अथ अनुभवके अर्थि छहद्रव्य कहैहै । अब जीवद्रव्य स्वरूप कथन ॥ १॥ दोहा ॥--
चेतनवंत अनंतगुण, पर्यय शक्ति अनंत । अलख अखंडित सर्वगत, जीवद्रव्य विरतंत ॥२०॥ है अर्थ-चेतनवान् है, अनंतगुणमय है, पर्यायनिकी शक्तितैहूं अनंत है, इंद्रियनिका विषय
नाही, अखंडित है, सर्वलोकमें भय है, ऐसा जीवद्रव्यका स्वरूप है ॥ २०॥ अव पुद्गलद्रव्य * कथन ॥२॥ दोहा॥- . 5 फरस वर्ण रस गंधमय, नरदपास संठान । अनुरूपी पुद्गल दरव, नभ प्रदेश परवान ॥ २१॥ है अर्थ—पुद्गलद्रव्य स्पर्श, वर्ण, रस अर गंधमय है, चोपडीके पासाका आकार है, अणुरूप & है, परमाणुरूप है अर आकाशके प्रदेशप्रमाण है ॥२१॥ अब धर्मद्रव्य कथन ॥३॥ दोहा ॥--हूँ जैसें सलिल समूहमें, करै मीनगति कर्म । तैसें पुदगल जीवकौं, चलन सहाई धर्म ॥ २२ ॥
नाटक. है अर्थ-जैसें जलका समूह) मच्छ• गतिरूप क्रियाको सहकारी है तैसें पुद्गलद्रव्यको अर ॥६॥
जीवद्रव्यको चलनेमें सहकारी धर्मद्रव्य है.॥ २२ ॥ अब अधर्मद्रव्य कथन ॥४॥दोहा॥