Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 16
________________ + + + + + करे तो पहले अशुभकी पक्षका एकांत तथा अब शुभका एकांत भया याही मोक्षमार्ग " R卐 मान्या तव मिथ्यात्वही दृढ भया । तातें शुभकी पक्ष छुडावने• शुद्धनयका आलंबनका उपदेश है,' याहीकू निश्चनय कहि सत्यार्थ कथा है । अशुद्धनयकू व्यवहार कहि असत्यार्थ कह्या है जाते व्यवहार । 卐 शुभाशुभरूप है, वंधका कारण है । सो या तो प्राणी अनादिसंहि प्रवत है। अर शुद्धनयरूप 1- कदे भया नाही, तातें याका उपदेश सुणि यामें लीन होय, व्यवहारका आलंबन छोडे तब बंधका .. अभावकरै। बहुरि स्वरूपको प्राप्ति भये पीछे शुद्ध अशुद्धका दोऊही नयका आलंबन नाहीं रहे हैं । नयका , आलंबन तो साधक अवस्थामें प्रयोजनवान् है । सो या अन्यतें ऐसा वर्णन है, तातें या खोलीकरि स्पष्ट अर्थ वचनिकारूप लिखिये तो सर्वथा एकान्तकी पक्ष मिटे, स्याद्वादका मर्म यथार्थ समझे,' यथार्थश्रद्धान होय मिथ्यात्व कटै । यह भी वचनिका करनेका प्रयोजन है । वहुरि ऐसा जान्नाजो स्वरूपकी प्राप्ति दोय प्रकार है, प्रथम तौ यथार्थ ज्ञान होय करि श्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन होगा। सो यह तो अविरतसम्यग्दृष्टि चतुर्थगुणस्थानवर्तीक भी होय है। तहां बाह्यव्यवहार तो अविरत-1 रूप ही रहै। तहां व्यवहारका आलंबन है ही । अर अन्तरंग सर्व नयका पक्षपातरहित अनेकांत-" तत्वार्थकी श्रद्धा होय है । बहुरि जब संयम धारि प्रमत्ताप्रमत्तस्थानगुणवर्ती मुनि होय अर जहांताई ॥ साक्षात् शुद्धोपयोगकी प्राप्ति न होय श्रेणी न चढे, तहां शुभरूपव्यवहारका भी बाह्य आलम्बन ॥ बहुरि दूजा साक्षात् शुद्धपयोगरूप वीतराग चारित्रका होना सो अनुभवमें शुद्धोपयोगकी ... साक्षात् प्राप्ती होय तामै व्यवहारका भी आलम्बन नाहीं । अर शुद्धनयका भी आलम्बन नाहीं।। - जातें आप साक्षात् शुद्धपयोगरूप भया, तब नयका आलम्बन कहैका ? नयका आलम्बन तो जेते ।। राग अंश था। तेतहि था । ऐसें अपने स्वरूपकी प्राप्ति भये पीछे पहले तो श्रद्धामैं नयपक्षमिटै है। 卐 पीछे साक्षात् वीतराग होय तब चारित्रसम्बन्धी पक्षपात मिटै है । पेसा नाहीं, जो साक्षात् वीत. + + + + म

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