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समाज और संस्कृति
देंगे, तब तक हमारी स्थिति त्रिशंकु के समान रहेगी । त्रिशंकु की क्या स्थिति थी ? इसके सम्बन्ध में यह कहा जाता है, कि वह स्वर्ग में जाने के लिए धरती से ऊपर तो उठ गया, किन्तु स्वर्ग में न पहुँच सका, धरती और स्वर्ग के बीच ही वह लटका रहा ।
त्रिशंकु के जीवन के सम्बन्ध में, वैदिक पुराण में यह कहा गया है, कि वह अपने युग का एक अन्यायी और अत्याचारी राजा था । एक बार उसने विचार किया, कि सब लोग जब स्वर्ग जाते हैं, तो अपने शरीर को यहीं छोड़ जाते हैं, परन्तु मुझे अपने इस तन से ही स्वर्ग जाना चाहिए । अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए अपने राज्य के पुरोहितों को एवं तपस्वी ऋषियों को एकत्रित किया और कहा मैं स्वर्ग जाना चाहता हूँ, क्या कोई उपाय है ? उन्होंने कहा—हाँ, अवश्य है । उस अहंकारी राजा ने कहा है, यह तो मैं भी जानता हूँ । परन्तु मैं अपने इस वर्तमान शरीर से ही स्वर्ग जाना चाहता हूँ । राजा की इस बात को सुनकर सबने इन्कार कर दिया और कहा कि आपकी इस वर्तमान देह के साथ हम आपको स्वर्ग नहीं भेज सकते । लेकिन विश्वामित्र ने कहा—मैं भेज दूंगा, आप जरा भी चिन्ता न करें । पुराण की कथा के अनुसार विश्वामित्र ने अपने तपोबल से उस राजा को धरती से ऊपर उठा दिया और वह ऊपर उठते-उठते, स्वर्ग की ओर बढ़ा, तो स्वर्ग के देवों को बड़ी चिन्ता हुई, वे बोले—यह राजा बड़ा अन्यायी और अत्याचारी है, यदि यह स्वर्ग में आ गया, तो इसे भी नरक बना देगा । देवताओं ने समवेत होकर उसे नीचे की ओर धकेल दिया, वह ऊपर से ही विश्वामित्र से कहने लगा स्वर्ग के यह देव मुझे आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं और मार रहे हैं । विश्वामित्र के मुँह से सहसा निकल पड़ा—यहीं ठहर और बस वह वहीं लटका रह गया । न वह स्वर्ग में जा सका और न नीचे धरती पर ही उतर सका । __यह एक पुराण की कहानी है । इसके मर्म को समझने का प्रयत्न कीजिए । इस प्रकार की स्थिति क्यों हो जाती है ? यह एक प्रश्न है । शास्त्रकारों का कहना है, कि जो लोग इस देह-भाव में बँध गये हैं, वे आत्माएँ न आगे परम चेतन में जा रहे हैं और न वे वापिस ही लौट पाते हैं । जो आत्मा मुक्ति की प्राप्ति के लिए चला था, वह मुक्ति प्राप्त न कर सका और न वह वापिस इस जीवन के धरातल पर उतर सका । जो न अध्यात्मवादी हो सका और न भौतिकवादी हो सका । उस मनुष्य
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