Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 16
________________ . .. पृष्ठ (.) जैन-धर्म और विश्वसमस्याएं =सतरहवां अध्याय विषय : पृष्ठ . . विषय जैनधर्म को विश्वकल्याण ८७२ . की समस्याओं को समाहित . . में सहकारिता और विश्व करने में उपादेयता . लोक-स्वरूप अठारहवां अध्याय . संसार क्या चीज़ है.? ८९६ १२ चक्रवर्ती ..... ९२४ . इस का कभी नाश होता है ८९६ ९ वासुदेव .:. .:. . ९२७. - भूमण्डल, खमण्डल का जैन-८९७ ९ प्रतिवासुदेव . . . . . ९२७ दृष्टि में विचार . ९ बलदेव .... . ९२७ भवनपति देव ९०६. उत्सर्पिणी काल । ९२९ मध्यलोक ९०७ ऊर्ध्व लोक ... मनुष्यलोक . ९०६ प्रभाव जम्बूद्वीप ६३८ लवण समुद्र ६१०. लेश्या की विशुद्धि . . . धातकी खण्ड ६१० इन्द्रिय विषय - ६३९ कालोदधि-समुद्र . . ९१ अवधि-ज्ञान का विषय ६३६ पुष्कर द्वीप ९११ नरक-स्वर्ग के विवेचन को ९४१ ज्योतिष्मण्डल ६१५ महत्त्व क्यों? . .. काल चक्र ६१७ सिद्ध-शिला. . ९४१ अवसर्पिणी काल ६१७ आधुनिक ख, भू सिद्धान्त ९४२. १४ रत्न ९२१. के साथ जैन भूगोल और . नव निधियां ........ ९२३ : खगोल का अन्तर क्यों है ? . HW. ९०८ सुख और द्यति ९३८ .. - -

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