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( १७ )
अपभ्रंश प्राकृत में किसी भी विभक्ति के थाने के पश्चात् नामरूप तो दीर्घ हो जाता है और दीर्घ हो तो
शब्द का अन्त्य स्वर ह्रस्व हो ह्रस्व हो जाता है । जैसे :
धवल-ढोल्ला
१.
श्यामल-सामला
दीर्घ- दीहा
रेखा-रेह
भणिता - भणि देखिये – हे० प्रा०
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अभियाति
दक्षिण
प्ररोह
प्रवचन
पुनः
समृद्धि
( श्र को श्रा ) प्रथमा विभक्तिः
(
)
(
को
)
( श्रा को श्र )
( श्र को अ )
व्या० ८|४ | ३३०|
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उत्तम
कतम
स्वरों का विशेष - अपवादिक-परिवर्तन
'' का परिवर्तन
'अ' को """
१
हियाइ
""
दाहिण
पारोह
पावयण
पुना
सामिद्धि
द्वितीया विभक्ति
प्रथमा विभक्ति
२
'अ' को 'इ' "
33
""
( पालि भाषा में भी 'अ' को 'श्री' होता है । देखिये - पा० प्र० पृ०
५२ - श्र=श्रा )
श्रहियाइ
दक्खि
परोह
पत्रयण
पुरा
समिद्धि श्रादि
उत्तिम
कइम
१. हे० प्रा० व्या० ८ | १|४४, ४५ तथा ६५ । २. हे० प्रा० व्या०
८|१|४६, ४७, ४८, ४६ ।
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