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प्राकृत व्याकरण
विवादग्रस्त इन दोनों व्युत्पत्तियों को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद रहा है। किन्तु हम यहाँ हेमचन्द्रवाली व्युत्पत्ति को ही मानकर चलेंगे। __ अब आगे चलकर हम नियम, उदाहरण, विशेष तथा पादटिप्पणी के सम्मिलित क्रमों से प्राकृत शब्दों की निरुक्ति का प्रयास करेंगे। - (१) लोक में प्रचलित वर्णसमाम्नाय ही प्राकृत में भी गृहीत है, किन्तु नीचे लिखे ऋ, ऋ, लु, ऐ, औ ये पाँच स्वर वर्ण और ङ, ब,श, ष, न, य ये छ व्यञ्जन प्राकृत में नहीं होते। हाँ, अपने वर्गवाले अक्षरों से संयुक्त ङ और ञ का व्यवहार देखने को मिलता है । जैसे—पको (पङ्कः), सङ्खो (शङ्खः), सङ्का (शङ्का ), कञ्चुत्रो (कञ्चकः), वञ्जनं ( वञ्चनम् )। : . * इस सम्बन्ध में श्रीहृषीकेश शास्त्री भट्टाचार्य के संस्कृत-इङ्गलिस प्राकृत व्याकरण (१८८३ ई०) के प्रिफेस की नीचे उद्धृत पङ्क्तियाँ प्रकाश डालती हैं-Modern philologist have not yet satisfactorily solved the question whether these dialects are derived directly from the Sanskrit or ( through ) some of its corruptions. It is contended by some that Pali was the medium through which all the Prakrit dialects come into existence. :: + हेमचन्द्र के अनुसार ऋ, ऋ, लु, लू, ऐ औ ये छ स्वर और ङ, ञ, श, ष, विसर्जनीय और प्लुत प्राकृत के वर्ण-समाम्नाय में नहीं होते । किन्हीं-किन्हीं शब्दों में हेमचन्द्र के अनुसार ऐ और औ भी देखे जाते हैं। जैसे—कैअवं (कैतवम् ), सौंअरिनं ( सौन्दर्यम् ) कौरवा ( कौरवाः)