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से प्रसन्नता पूर्वक मरना चाहते थे? क्या उनकी अन्तर आत्मा मे वेदना नही हुई ? क्या मरते समय उन्होने आहे नही भरी जीवो को 'जान बुझकर वेदना पहुँचाई जाती है और उन्हें मारा जाता है फिर भी हिंसा नही ? और उन हिंसको को कोई दड नही ? सबसे बडी बात तो यह कि पूजा के काम में लिए जानेवाले कच्चे पानी की एक बूद के लिए तोश्रावको के सामने ये मुनिराज उदासी, दुख और करुणा का वह नाटक दिखाते है जिसकी कोई सीमा नही और यहाँ अपने ही सिर पर पडते घडो पानी के लिए कोई दुःख, दर्द या करुणा कुछ भी नहीं। पात्रे भर-२ कर श्रावकोके घरसे पानी लाकर गट-२ पीते हुए भी जो ऐसी करुणा प्रदर्शित किया करते है क्या उन जीवो पर उन्हें वास्तव में करुणा है या निपट निराला 'ढोग ? पाठक वृन्द इस पर विचारें।'
साध्वीजी की डूबने से रक्षा:-सूत्र में यह स्पष्ट आज्ञा है कि नदी में गिरी हुई साध्वी को साघु अवश्य वचावे। ऐसी आज्ञा क्यो ?, यह प्रत्यक्ष हिंसा है या नहीं? कई इस प्रश्न को "भगवान की यहाँ आज्ञा है" इस प्रोट के साथ-२ भुलावेमें डालने के लिए अपने त्यागकी बडी-२ वातें जैसे-"नाव डूब जाय, तो भी हम जरा भी चू चाँ नही करते, नाविक कह दे तो नदी के बीच में ही हमें उतरना पडे; चक्कर खाकर जाना मजूर पर वनती कोशिश नदी पार नही होते", आदि आदि खडी कर देते है। पर इस तरह कभी कोई असलियत छिप सकती है? लखपति अपने लाखो के व्यापार की चर्चा करे, वडी-२ दान की बातें वताये पर यदि हमारे पाँच रुपये न देतो बाकी सबसे हमे क्या लेना-देना ? 'उसी -तरह मुनिराज द्वारा मारे जाने वाले जीवो के लिए मुनिराज को महानता का क्या
मूल्य ? वे तो रोते है अपने प्राणो के लिए। तव उन्हे.उत्तर देना है कि ऐसी 'प्रत्यक्ष हिंसा करके वे अपना बचाव क्यो करते हैं ? निश्चय ही ऐसी हिंसा करके साधु महाराज का वचना, बचाना यदि अच्छा न होता तो परमात्मा द्वारा ऐसी आज्ञा कभी नहीं दी जाती। चाहे यह आज्ञा साध्वीजी महाराज को बचाने के लिए ही क्यो न दो गई हो पर साध्वीजी महाराज का जीवन, महत्व की दृष्टि से मुनिराज के जीवन से कोई अन्तर नही रखता । तव उन्हें यह समझना है कि 'परमात्मा ने ऐसी हिंसा उनसे कराके भी उन्हें अहिंसक कैसे कहा? ___यदि आज ठाणाग सूत्र उपलब्ध न होता तो हमारे ये नवीन मतवाले भाई कभी यह स्वीकार नहीं करते कि नदी में गिरी हुई साध्वी को, साधु को बचाना