________________
कर। इस उपयोग से काम बनता न देख मान लीजिए पत्थर छीन कर हमने शक्ति से काम लिया पर शक्ति के प्रयोग से किसी जीव को तो नही मारा। जुल्म हुआ तो इतना ही कि बालक के विनोद मे कुछ कमी पडी। पर ऐसा विनोद भी किस काम का जिसमे जीवो का हनन होता हो। जैनी ऐसे विनोद का समर्थन नही कर सकते।
बालक अबोध होने के कारण उसके साथ हमने शक्ति का प्रयोग जरूर किया पर किया गया यहाँ उसी के पूर्ण हित की दृष्टि से। यहाँ बालक को नही बचाया जा रहा है, बचाई जा रही है बालक के पापो की वृद्धि । अबोध जीवो के हित की दृष्टि से किये गये ऐसे शक्ति के प्रयोग को कोई बुरा कह ही कैसे सकता है ? जब कि मुनिराज स्वय अबोध जीवो के प्रति रात और दिन शक्ति का प्रयोग किया करते है। इनमे आचार्य श्री भीखणजी के सुशिष्य भी सम्मिलित है। पाठक-वृन्द देखे, जगह पूज कर सूक्ष्म जीवो को ये दूर फेकते हैं या नहीं? मुंह पर या भोजन पर बैठी मक्खी को झटके से उडाते है या नही? तो क्या यह शक्ति का प्रयोग नही है ? पूजने में बिच्छू या साप आ जाय तो ये मुनिराज शक्ति के प्रयोग में कुछ तोवता लाते हैं या नहीं? लाइये ना यह ज्ञान काम में ? शक्ति का प्रयोग क्यो? हमने शक्ति के प्रयोग से यदि उस बालक का जीव दुखाया या अतराय दी तो यहाँ मुनिराज ने क्या किया? शक्ति का प्रयोग करके क्या मक्खी का जी नही दुखाया? बेचारी किसी आशा से भोजन पर आकर बैठी थी, उनके मुंह पर बैठी थी। झपट्टा देकर उडाने से क्या मक्खी का जीव नही दुखा' क्या मुनिराजो को ऐसे अवती जीवो को बचाने से पाप होता है ? शक्ति का ऐसा प्रयोग क्या अनुचित है ? उन्होने शक्ति को काम में लेकर किन्ही जीवो के प्राण ही बचाये है पर हमने तो शक्ति के प्रयोग से किसी जीव को, पापो से बचाया है। फिर भी क्या हमारा यह व्यवहार बुरा माना जायेगा?
जहाँ अबोध जीव की सम्पूर्ण भलाई से मतलब हो,शक्ति से कुछ काम ले भी ले तो भी उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। इसलिए हमारा बालक के हाथ से, उसको पाप से बचाने की दृष्टि से पत्थर को छीन लेना, विल्कुल उचित थाधर्म पूर्ण ही था, ऐसा तो सम्भवत. स्वामीजी के अनुयायी भी मानेंगे।
तो बच्चे की भलाई की दृष्टि से किया गया काम और बकरे मारने वाले को मलाई,की दृष्टि से किया गया काम लाभ की दृष्टि से एक समान हैं इसलिए
७८