Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ ? पर क्या हमारे जैन साधुग्रो को भी आत्मा का ज्ञान नही है ? विपयो के सम्बन्ध में जानकारी नही है नमार की क्षणभग्रता का ध्यान नही है ? यदि है, तो वे क्यो कलह में फँसे हुए हैं ? साबुनो की बात जाने दीजिये, घुरघर अचार्यों को ही देस लें। हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि "ज्ञान की कमी" ही इन कलहो का एकान्त कारण नहीं है । तव दूसरे कारणो को भी ठीक से समझने की आवश्यकता है । ज्ञानियों की लडाई समुद्र में लगी आग के समान है । अज्ञानियो की लडाई, अज्ञान दूर हो जाने पर मिट जाने की आगा तो रहती है पर ज्ञानियो की लडाईहरे राम । ज्ञानियों के कथनानुसार इस कलह के बीज है- " मान और मद, ईर्ष्या और द्वेष ।" ताक्तवर को मान और मद का रोग अधिक रहता है, कमजोर को ईर्ष्या श्रीर द्वेप का । वस्तुत यह एक अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि यह कमजोरी बडे-बडे ज्ञानियो भी विद्यमान है । हम जानते है कि क्रोध करना बुरा है, काम-वासना बुरी है । फिर भी हम इन्हें रोक नही सकते, इनसे बच नही सकते । क्या इनसे वचाव नही हो सकता ? यदि वचाव न हो सकता हो तव बचाव की परेशानी मे पडना बेकार है और यदि वचाव मभव हो तो उन उपायो को हमे जानना चाहिए ताकि हमें भी अपने जीवन में उचित लाभ की प्राप्ति हो सके । यह निश्चित है कि बचाव हो सकता है। सफल न हो, यह दूसरी बात है । इसके लिए अभ्यास की आवश्यकता है । हम बहुत से सफल हुए हैं । पूर्ण अनुभव और निरतर कठोर किमी से वस्तु उधार या माग कर लानी हो, या किसी दूसरे को समझाना हो तो मामला दूसरो पर आश्रित होने के कारण वहां सफलता सन्दिग्ध हो सकती हे परन्तु 'अपनी ही भलाई के लिए, अपने ही मन पर, अपना ही नियंत्रण कायम करना है --- यह इतना सरल और सीधा लगता है कि हम शीघ्र यह सोच लेते है - "ऐसा तो हम कभी का कर लेते ।" पर सुनने और समझने में यह जितना सरल लगता है, जीवन में उतारना उतना ही कठिन है । हमारा मन चचल घोडे के समान है । लगाम लगा कर हमें उसे उचित रास्ते पर चलाना है । वह कभी भी विगड कर रास्ता छोड सकता है और हमें १२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135