Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 115
________________ न रखें तो सारा मामला वैसे ही बिगड सकता है जैसे बना बनाया हलवा मुट्ठी भर वालू के मिला देने से विगड जाता है। हम वहां इसलिए जाते हैं कि मन में सहज ही उत्पन्न होने वाले विषयो और कषायो को रोका जा सके। यहाँ आकर भी इनको कम न करे और उल्टे तीनतर बनाये तो हमारा आना ही निरर्थक है। मैले कपडे को तालाब पर साफ करने के लिए जाते हैं। यदि साफ न किया उल्टा अधिक मैला किया, तो फिर हम बुद्धिमान कैसे ? मदिर प्रवेश के साथ-२ हम यह प्रतिज्ञा कर लें कि हम किपर क्रोध नही करेगे, हुक्म नही चलायेंगे, रौव नही झाडेगे और बडा धैर्य व विनय रखेंगे। हो सकता है किसी से भूल हो जाय। ऐसे स्थान पर हमारे लिये शान्ति रखना उचित है। मदिर में प्रवेश के बाद किसी भी वाद-विवाद के विषय पर या गृहस्थ सम्बन्धी झगडो इत्यादि पर हम कुछ भी बातचीत करे। इसलिए अच्छा यही है कि हम विशेषकर मौन ही रखें। यदि कोई ऐसा ही प्रसग उपस्थित हो जाय कि किसी से कुछ वात कहनी पडे तो सक्षेप में धीरे से कह दें ताकि हमारे कारण दूसरो का ध्यान जरा भी इधर-उधर न बटे। औरो का ध्यान रखते हुए हम प्रत्येक कार्य को शीघ्र समाप्त कर लें,चाहे वह स्नान का हो अथवा पूजा का । इससे अन्य भाई यही समझेगे कि हमने उनका भी वडा ध्यान रक्खा। यदि हम प्रमादवश आवश्यकतासे अधिक समय लगाते है तो दूसरे भाइयोके मनो मे हमारे प्रति असतोष यानी कषाय पैदा हो सकता है जो किसीके लिए अच्छा नही कहा जा सकता। सम्भव है हमारे भाई उपयोग की कमी के कारण, पूजा इत्यादि करने मे अधिक समय ले लें और हमें पूजा करके किसी कार्य वश जल्दी जाना है तो उत्तम यही है कि द्रव्य-पूजा किये विना परमात्मा की जय बोलते हुए,भाव पूजा करके ही चले जाय, अपेक्षाकृत इसके कि धक्का-मुक्की करते हुए पूजा करके जाय । हम पहले आयें हो तब भी पीछे आनेवाले भाइयो को यदि पहले ल भ लेनेके लिए. प्रार्थना करें तो हमारा प्रेम इतना अधिक बढेगा कि क्या कहे। वहुत सम्भव है वे इस प्रस्ताव को स्वीकार ही न करें। यदि कर लें तो हमे अहोभाग्य मानना चाहिए कि उत्तम कार्य में हमें एक भाई को सहयोग देने का मौका मिला। १८१

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