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जल, पुष्प या केसर-चन्दन कम हो तो हमे बडे विवेक और सतोष पूर्वक बहुत ही कम पदार्थो से काम निकाल लेना चाहिए। ये सव वस्तुएँ परमात्मा के चरणो में ही अर्पण की जाने वाली है। हम अर्पण करे तो क्या, और दूसरे भाई करें तो क्या। हम ही चढावे ऐसा आग्रह हमारे दिलो मे उत्पन्न ही न हो । इन पर तो सभी भाइयो का समान अधिकार होता है। इसलिए हमे शान्ति रखना उचित है । परमात्मा के बहुमानमे दूसरो द्वारा चढता हुआ या चढा हुआ पदार्थ देखकर भी हम उत्तम भावना का उपार्जन कर सकते है। जव थोडे पदार्थो से काम निकाला जा सकता है फिर अन्य भाइयो के मनो मे क्यो उचाट पैदा करे और क्यो उनके अतराय के कारण वने। सभी कार्य हम खूब हिलमिल कर करे। ___पर्व के दिन यदि पूजा करने वाले भाइयो की भीड अधिक हो जाय, तो रोज न आने वाले भाइयो को पूजा करने का पहले मौका देते हुए हमें हर प्रकार के सुन्दर व्यवहार से उनका आदर करना चाहिए ताकि उनका मन फिर पूजा करने के लिये लालायित हो।
मूल-नायकजी के सामने दर्शन या चैत्यवन्दन करने वाले भाइयो की भीड अधिक हो तो हम उनकी पूजा करने में बहुत थोडा समय लगावें। वहाँ नौअगो की पूजा न कर, एक अगूठे की पूजा मे ही सतोष मान ले। इसका कारण यह है कि वहाँ मूर्ति बडी होती है और सजावट भी अधिक । इसलिए अल्प जानकारी रखने वाले भाई सहज ही उधर अधिक आकर्षित हुआ करते है। वस्तुत भगवान की मूर्ति तो सब जगह एक समान ही है। इसलिए समझदार तो दूसरी जगह रक्खी मूर्तियो से भी वैसा ही लाभ उठा सकते है। अत मूल-नायकजी के वहाँ अधिक समय लगाकर दूसरो के अतराय या कषाय का कारण न बनना ही उचित है। __ कोई भाई परमात्मा को नमस्कार करता हो तो हम उसके सामने से लापरवाही पूर्वक न निकले। दूसरा रास्ता न होने के कारण यदि हमारे लिए जाना जरूरी हो तो हमे वडे विनय के साथ झुककर शीघ्र धीरे से निकल जाना चाहिए ताकि उनकी भक्ति मे अतराय उत्पन्न न हो। इसी तरह कोई भाई स्तुति करता हो तो उस समय हमें अधिक उच्च स्वर से नही गाना चाहिए। बात-बात में हमें यही
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