Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ पूजा का स्वास्थ्य से सम्बन्ध :--- पूजा से पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए मन को स्वस्थ और प्रसन्न रखना बहुत जरूरी है । जितना वह प्रसन्न रहेगा उतना ही वह अपने लक्ष्य में अधिक सफल हो सकेगा । मन की प्रसन्नता शरीर कीनोगता पर ही निर्भर है । इसलिए पूजा में शरीर की स्वस्थता का आधार स्वच्छ एवं अन्यान्य उपायो का भी बडा ध्यान रखा गया है । स्नान, स्वच्छ वस्त्रो का उपयोग, पचामृत से प्रक्षालन, धूप इत्यादि का प्रयोग, फूल, इत्र, चन्दन, ब्रास, केसर, कस्तूरी आदि द्रव्यो का प्रयोग- शरीर की नीरोगता और मन की प्रसन्नता से घनिष्ट सम्बन्ध रखते है । अनेक राज-रोगो से हमारा सहज ही में बचाव होता रहता है । जैसे- पचामृत के स्पर्श से नखो का विष हलका पड जाता है । चन्दन और ब्रास का तिलक, और पूजा के समय उसके उगली द्वारा स्पर्श से शरीर के कई तरह के विषो का प्रकोप शान्त हो जाता है। फूलो की सुगन्ध से मस्तिष्क सम्बन्धी अनेक रोगादिक उत्पन्न नही होते । धूप से अनेक विपैले जीवो से बचाव रहता है । पहाडो की चढाई से, खून की शुद्धि के साथ-साथ रक्त चाप आदि भयकर रोग उत्पन्न नही होते । मन के हर्पित रहने से मन की चिन्ता तो दूर होती है, शरीर में रोमाच होने से एक प्रकार की प्रभावशाली विद्युत - लहर उत्पन्न होकर, शरीर के भयकर कष्टो को भी दूर कर देती है । वास्तव मे नीरोग रहकर ही हम धर्म-ध्यान का कुछ लाभ प्राप्त कर सकते हैं । सैकडो भाई एक साथ एकत्रित होते है । श्वास- उच्छवास या वायु की दुर्गन्ध आदि के कारण भी मन में उचाट या शरीर मे रोगादिक पैदा हो सकते है इसलिए ऐसे साधन रन से ये सब सकट भी टल जाते है । आत्म- बल की वृद्धि के लिए तो कहना ही क्या ? परमात्मा के शुद्ध गुणो की याद आनन्द की सृष्टि हो जाती है, - " उत्तम ना गुण गावता, गुण उपजै निज अग ।" पूजा में उपयोग और विवेक भाइयों से बर्ताव :- चूकि मदिरो मे सैकडो भाई लाभ उठाने के लिए एक "साथ आते हैं और मंदिर तो मनुष्य मात्र की सपत्ति होती है इसलिए आपस के व्यवहार का ध्यान रखना बहुत जरूरी है । यदि व्यवहार का उचित ध्यान १८०

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135