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कपायो के कारणो को भी हमें विवेक पूर्वक रोकना चाहिए । आजकल मदिरो में या मदिरों के लिए कलह अधिक हो रहा है, यह हमे मानना पडता है। वास्तव में यह बहुत बुरा है। इसको देखकर यदि कोई वहा जाने से घृणा करने लगे और जाना छोड़ दे तो उगको दोप नहीं दिया जा सकता। कलह मे महान् कपायों का ही उदय होता है जो हमारे लिए कभी हितकर नहीं है । मदिरो का यही महत्व है कि हम गापायो में निवृत्ति प्राप्त हो। ___ "आगफल पलह हीं नहीं है ? मदिरो मे भी यदि कलह हो गया, तो क्या सान बात हो गई ? मदिर भी आतिर इनी तसार में है।" ऐसी दलीले कभी स्वीकार नहीं की जा सकती। फिर दूसरे ठिकानो में और मदिरो में कोई फा नहीं रहेगा। दूमरी की गलती या कमजोरी को आगे रखकर अपनी गलती या कमजोरी की भयकरता को कम समझना, छिपाना या नमर्थन करना कदापि उचित नहीं। औपधि मे ही यदि रोग बढे, तो फिर उस ओपधि का महत्व ही क्या? __उनित यही है कि हम अपनी कमजोरी समझे,उसे स्वीकार करे और उसे दूर करने के उचित उपाय अपनावें। हमारा यह परम कर्तव्य है कि कम-से-कम हम अपने पवित्र मदिरो को तो इस कलह स्पो महान् कीचड से अछूता रखें। हमें कलह के कारणो को ढूढकर उनका उचित निवारण करना चाहिए।
मदिरो मे कलह के मुरपतया दो कारण है,एक विधि-विधान का और दूसरा उसके उचित प्रवन्ध का । कुछ कलह का कारण, पूजा के समय हमारे उपयोग की कमी भी है, पर वह कलह प्राय हल्का और क्षणिक होता है।
पहला कारण तो पडितो की मेहरबानी का ही फल है और दूसरा कारण हमारी 'शिथिलता' ने सम्बन्धित है। पहला कारण तभी दूर हो सकता है जब हमारे में पूर्ण ज्ञान और विवेक जागे । हम पडित लोगो को भी अपना उपदेश वापिन लेने के लिए समझा सकते हैं। मक्षेप में उन्हें इतना कह सकते हैं कि मदिर का विवान हमारे कपायो को कम करने के लिए है, विपयो को छुड़ाने के लिए है, उन्हे तोय करने के लिए नहीं। हम आपके ऐमे एक भी उपदेश को नहीं मान सकते जिससे हमारे उद्देश्य को ठेस पहुँचती हो । जब मदिर प्राणी मात्र के है और जब प्राणी, प्राणी की रुचि भिन्न होती है, फिर हमारी अपनी खीच
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