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"आपके अनन्त गुणो को याद करके मेरी आत्मा मे दवे वैसे ही गुण, उसी तरह विकसित हो आये जैने सिंह को गर्जना सुन कर सिंह के बच्चे में, (जो भेडो मे रहा अपना मान भल, देखा-देखी भेडो का मा आचरण अपना रहा था)सिंहत्व जागृत हो जाता है।"
पडितजी का यह कथन महज ही मोई हुई शक्ति को जगाने एव हममें अपूर्व दृढता (आत्म-बल) उत्पन्न करने में अत्यन्त प्रेरणादायक है।
परमात्मा की दृढता का स्मरण कर हमारे में भी दृढता पनप आती है,चाहे परमात्मा कुछ भी महायता न करें। इसलिए हे भव्य आत्मायो । परमात्मा के गुणो का स्मरण करना हमारे लिए महान् हितकारी है।
सम्भवनाथ स्वामी के स्तवन में पडितजी ने अत्यन्त हृदय-स्पर्शी भाव व्यक्त किये हैं
जन्म कृतारय तेहनो रे, दिवस सफल पण तास । जिनवर०॥ नगत शरण जिन चरणने रे, वदे घरीय उल्लास जिनवर०॥
जिनवर पूजोनी, पूजो-पूजो रे भविक जनजन्म उसी का धन्य है और यही दिन उसके लिए हितकारी है जिसने ससार के सर्वप्राणियोको शरण देनेवाले परम उपकारी परमात्मा के चरणो में बडी प्रसन्नता के साय भक्ति-यूर्वक नमस्कार किया है ।
साधारण जीवो मे ऐसा भावपूर्ण नमस्कार तभी उदय मे आता है जब वे पदार्यों से परमात्मा का बहुमान करने का व्यवहार अपना कर उसमें पूर्ण रुचि लेते हैं। इसलिए हे भवि प्राणियो। परमात्मा का पूजन बडे ठाठ-बाट से अवश्य करना।
पद्म-प्रभु स्वामी के स्तवन में पडितजी ने परम स्तुत्य भाव व्यक्त किये है
बोजे वृक्ष अनन्तता रे लाल, पसरे भू जल योग रे ॥वालेसर०॥ तिम मुझ मातम संपदा रे लाल, प्रगटे प्रभु सयोग रे ॥वालेसर०॥
तुझ दरिसण मुझ बाल होरे लाल
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