Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 120
________________ किस योनी मे जन्म लूंगा ? महापुरुषो के गुणो की प्रशसा करने का अवसर भी मुझे मिलेगा या नही ? हे क्षमासागर | मुझे अत्यन्त खुशी है, कि आप जैसे वीतराग महाप्रभु के गुणो की प्रशसा करने का इस जीवन में यह अवसर मिला हैं और आपके परम शान्त स्वभाव का मै आस्वाद कर रहा हूँ । फिर यह सुयोग मिलना बडा कठिन है । हे जिनेन्द्र । जितना हो सके मैं आपके समता रस रूपी अमृत का पान कर लू और अपने भवोभव की मान, अभिमान और काम वासना की इस भयानक दावाग्नि को थोडी देर के लिए कुछ तो शान्त कर लूं । हे देवाधिदेव । असलियत को समझता हुआ भी में असलियत पर कायम नही रह सकता, यही मेरे लिए एक विकट दुविधा है । हे स्वामी । बाहर तो अशान्ति की ज्वाला जल रही है । यहाँ आपके परम शीतल मुखारविन्द को निरख कर मुझे बडी सान्त्वना मिली है ।" इस प्रकार जिनराज भगवान की शान्त मूर्ति को देखकर हम अनेक प्रकार से चिंतन करना और मन पर प्रभाव डालना सीखें । परमात्मा में "कितनी शान्ति, कितनी क्षमा, कैसी शान्ति, कैसी क्षमा, " - इस रट से अपने हृदय घट को जितना भर सके, शीघ्र ठसाठस भर लें। आगे भवो भव मे यह दर्शन हमारे लिए बहुत काम आयेगा । इस तरह के प्रयत्न से हमारा चचल मन थोडा बहुत अवश्य सुधरेगा । इस तरह हम अनेक प्रकार से परमात्मा के गुणो की प्रशसा और हमारे अवगुणों की निंदा करते हुए, मन की रुचि, गुणो की तरफ झुकाने और अवगुणों से हटाने की, बना सकते हैं। असल में मन पर चाबुक लगाने या प्रकुश जमाने की कला को सीखते हुए हम उसमे प्रवीण हो सकते हैं । लाभ के अन्य उपाय :-कहा जा सकता है कि इस तरह की प्रवीणता तो परमात्मा के चित्र के सहारे भी प्राप्त हो सकती है। श्यकता है जो 'प्रबन्ध' और 'सम्पत्ति' के निमित्त के कारण बन जाते हैं और बन जाते है-बहनो और से- 'विषयों' के भी कारण । १८६ फिर मंदिरो की क्या आव समय - २ पर कलह या चिन्ता भाइयो के साथ-२ इकट्ठे होने

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