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पूज्य-भाव (श्रद्धा) उत्पन्न हो जाय तो समझना चाहिए हमें बहुत कुछ मिल गया। आगे चलकर उनके गुणो को धारण करने में और उनके कहे अनुसार चलने में हमारा मार्ग वडा सरल हो जाता है। यह उपलब्धि कम नहीं है ।
जीवन-चरित्र को जानकारी. दूसरी बात जो हमारे सामने आती है, वह है भगवान के गुणो ने परिचित होकर उनको धारण करने की । गुणो की जानकारी उनके जीवन चरित्र से हो जाती है। उनके जीवन के सम्बन्ध में जितनी अधिक हमें जानकारी होगी, लक्ष्य-प्राप्ति में हमे उतनी ही अधिक सहायता मिलेगी। इसलिए यदि उनकी मूर्ति से अधिक लाभ उठाना हो तो हमे उनके जीवन-चरित्र पर अच्छी तरह मनन करना चाहिये।।
हम चौवीस तीर्यकरो की मूर्तियां देखते है पर जिनका जीवन चरित्र हमें याद होता है, उनकी मूर्ति को देख कर जितने विचार हमारे मस्तिष्क में दौड़ते हैं उतने विचार उन की मूर्तियो को देखकर नही दौडते जिनका जीवन-चरित्र हमारी जानकारी मे नही है । भगवान् पर्श्वनाथ की मूर्ति को देखते ही, कमठ द्वारा उनको दिये गये कष्ट और ऐसे समयमें भी वे कितने शान्त रहे आदि घटनाक्रम शीघ्र हमारे दिमाग में आ जाता है । भगवान नेमीनाथ की याद आते ही अन्य जीवोंके वचावमे उनके जीवन का महान् त्याग तथा विवाह को महान् उमग को सयमी जीवन में पलटना आदि घटनाएँ दिलमें रोमाच पैदा कर देती है । भगवान महावीर स्वामी की मूर्ति को देखते ही उनके पैरो पर खीर का पकाया जाना, कानो मे कीलो का ठोका जाना, सर्प का भयानक दशन फिर भी महान् शान्ति, महान क्षमा, अविचल ध्यान, प्रचण्ड तपस्या आदि अनेक प्रकार की घटनाये हमारी आँखो के सामने नाचने लगती है। पर जिन तीर्थंकरो का जीवन चरित्र हमारे ख्याल मे नही है, उनके सम्बन्ध में अधिक क्या सोचेगे? इतना ही कि वे एक तीर्थकर थे। उनके जीवन चरित्र को ठीक से जाने बिना हम अपने मस्तिष्क में भावो की विस्तृत फिल्म तैयार नही कर सकते। हाँ, इतनी सुविधा हमे जरुर है कि सब तीर्थकरो की मूर्तियां एक जैसी होने के कारण तया उनके गुण समान होने के कारण-क्षमा, शान्ति, करुणा, त्याग आदि-हम किसी भी मूर्ति को उन्ही की मान कर देख सकते हैं जिनका कि जीवन हमें याद है, या उनके विशेष-२ गुणो को याद करके सराहना. अनुमोदन आदि करते हुए लाभ उठा सकते है पर विस्तार पूर्वक जीवन-चरित्र
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