Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 108
________________ दीखता है जो हमारे प्रत्येक के लिए अनुभव करने की बात है । यदि गाधीजी में किसी की पूर्ण श्रद्धा हो और परमात्मा मे हमारी श्रद्धा की तरह, उनके वतलाये रास्ते के सिवाय एक इच भी इधर-उधर जाने का इरादा न हो तो वह उनकी मूर्ति के चरणो मे श्रद्धा से दो फूल अवश्य चढायेगा । प्रत्यक्ष में इस व्यवहार से हमे लाभ का अनुभव न भी हो पर यह शत-प्रतिशत सत्य है कि, इस प्रकार के व्यवहार से वहाँ उन के बतलाये रास्ते पर चलने मे कुछ अधिक ही सक्षम होगा । कारण इस व्यवहार से उसे नित्य प्रति एक प्रेरणादायक स्फूर्ति प्राप्त होती रहती है । यह तो हुई उसकी बात जिसने गाधीजी को प्रत्यक्ष देखा है और उनके सम्पर्क मे आने के कारण उनके गुणो मे श्रद्धा स्थिर कर चुका है पर उस बालक को हम गाजी के गुणो की तरफ किस प्रकार आकृष्ट कर सकते हैं, जिसने कभी उन्हे देखा ही नही ? यह हम अच्छी तरह जानते है कि गुणो ही के कारण हमारा किसी मे पूज्य-भाव उत्पन्न होता है पर असली करामात हमारे उस पूज्य-भाव की है जो गुण की तरफ हमें अधिकाधिक खीच ले जाता है । किसी के प्रति यदि हमारा पूज्य-भाव शेष हो जाय, चाहे वे हमारे माता-पिता ही क्यो न हो, तो हम उनके अच्छे-अच्छे उपदेशो की भी अवहेलना करने लगते है । यदि हमारा पूज्य - भाव दृढ है तो उनकी हर बात को हम पूर्ण विश्वास के साथ मान लेते है । यह है श्रद्धा का महत्व | पूर्ण श्रद्धा की तो बात ही अलग है पर बहुमान का व्यवहार तो हम थोडी श्रद्धा वालो मे भी देखते है । आज भी बड़े-बड़े लोग गाधीजी की समाधि पर बडी - २ पुष्प मालाये रखते है । इससे क्या लाभ है ? गाधी जी को न कुछ लेना न देना और न चढाने वालो को ही इस व्यवहार से किसी द्रव्य-वस्तु की प्राप्ति है । पर इससे चढाने वालो के मनो मे प्रेरणा श्रीर शक्ति तो मिलती ही है । साथ ही वे हमारे मन में और विशेष कर उन अबोध बालको के मन में जिन्होने कभी गाँधीजी को नही देखा है, श्रद्धा उत्पन्न कराने मे महान् सहायक बनते है । यह सब देख कर, बालक यही सोचते है कि महात्माजी जरूर एक बडे भारी महान् पुरुष हुए है, तभी इतने बडे - २ महानुभाव उनका इतना आदर सत्कार करते हैं और अपना मस्तक झुकाते है । बचपन ही से यदि किसी गुणवान के प्रति हमारे १७४

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