Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 110
________________ याद होने से उनके जीवन की विभिन्न घटनाओ को स्मरण कर हम अधिक लाभान्वित हो सकते है। स्तवन, स्तुति, पूजा आदि की विशेषता :--पूर्वाचार्यों ने हमारी सुविधा के लिए भगवान के गुणो को अनेक छदो, स्तुतियो, स्तवनो तथा पूजामो में अनेक प्रकार से लिपिबद्ध किया है। उन्हे जान लेने से भी हमे मूर्ति से लाभ उठाने मे वडा सहयोग मिल सकता है। गायन कला का अभ्यास तो हमे होना ही चाहिए। यह सोने में सुगन्धि के समान है। परमात्मा की शान्त मूर्ति के सामने उनके गुणगान और साथ-२ महान् गायन-कला का उपयोग। आनन्द की जो लहर मन मे उत्पन्न होती है कहते नही बनती। गायन-कला के सम्बन्ध में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं। यह कला मनुष्य को तो क्या, पशुओ तक को प्रभावित करने वाली है। इसके प्रभाव मे मनुष्य तल्लीन होकर थोडी देर के लिए संसार के सर्व सुख-दुख ही भूल जाता है। इसलिए अच्छे लाभ के लिए गायन-कला का अभ्यास होना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। दिल भर कर जब तक परमात्मा के गुणो के दो एक गान नही कर लेते, हमारे उद्देश्य की पूर्ण पूर्ति हो नही पाती। हमे यह भी अनुभव होता है कि गायन-कला को पराकाष्ठा तक पहुंचाने के लिये मूर्ति का सान्निध्य बडा सहायक सिद्ध हो सकता है। एक गायन मूर्ति के सामने गाइये और एक यो हो । सुनने वालो से पूछिये या अपने दिल में अनुभव करिये कि मिठास किस में अधिक रहा, मन मे स्थिरता कहाँ अधिक रही और तल्लीनता किसमे अधिक आई ? फिर तय करिये कि मूर्ति का योग हमारे लाभ की दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण और निराला है। पूजा में द्रव्य की उपयोगिता :--द्रव्य-पूजा का विधि-विधान और इसके वास्तविक हेतु को हमे समझना चाहिए। परमात्मा में हमारा बहुमान यानी श्रद्धा और विशेष कर हमारे भटकते हुए मन को उनके गुणो मे टिके रहने मे सहारा मिल सके इसीलिए यह अवलम्बन विशेष रूप से लिया गया है। हम यह भी अनुभव करेगे कि हमारे इस प्रकार के व्यवहार से,अन्यमति, अल्पज्ञ और विशेष कर हमारे बच्चो को, जो कच्ची फूनवाडी के सदृश है, परमात्मा की तरफ आकर्षित करने का इतना अच्छा ढग है कि जिसका मूल्याकन नही किया जा सकता। १७६

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