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यदि शुरु ही से उनके हृदय में परमात्मा के प्रति पूज्य-भाव जागृत हो गये तो भविष्य में उन्हें बहुत बडी सफलता प्राप्त होना कठिन नही होगा। जब परमात्मा में प्रगाढ श्रद्धा रहेगी तभी वे अपने मन को सरलता और सफलता पूर्वक उनके बतलाये मार्ग की ओर प्रवृत्त कर सकेगे। द्रव्य-पूजा से बच्चो और अल्पज्ञो पर तो अच्छा प्रभाव पडता ही है हमारे मन पर भी कम प्रभाव नही पडता। परमात्मा के गुणो में श्रद्धा रख कर जब चन्दन की एक विन्दी लगाते है या दो फूल अर्पित करते है तो मन प्रफुल्लित हो उठता है। मानो आज हम धन्य-२ हो गये। गुणो को धारण करने की मीज तो जव मिलेगी तव मिलेगी पर आज महाभाग्यशाली ऐसे गुणवान पुरुपो की प्रशसा करने का अवसर तो मिला। यह आनन्द तो प्राप्त हुआ। उस समय हमारा हृदय गद्-गद् हो जाता है। श्रद्धा से हम नत हो जाते है। आज गाधीजी ससार में नहीं रहे पर लोग उनकी समाधि पर दो फूल चढाकर ही अपने को सौभाग्यवान समझते है। फूल चढाते समय उनका रोम-रोम पुलकित हो जाता है। आंखो मे प्रेमाश्रु छलक आते हैं। उनका इतिहास मन में तरो-ताजा हो उठता है। उनके गुणो को याद करके मन को एक नयी स्फूर्तिदायक प्रेरणा मिलती है। हमारी शिथिलता दूर होती है और हम उन गुणो में शक्तिशाली बन जाते है। हम मनुष्य है, ढग से हमें प्रत्येक वस्तु से लाभ उठाना चाहिए। ___ इसी तरह मिठाई, फल इत्यादि चढाने का उपयोग है। हम स्वय न खाकर, स्वय व्यवहार में न लेकर पहले ही दिन से 'परमात्मा की सेवा में भेंट करेगे', इस आनन्द मे मग्न हो जाते हैं। कभी-२ सोचते हैं कि कही यह हमारा बचपन तो नहीं है? परमात्मा को न लेना न देना, न खाना न पीना। भेंट करेगे? किसको भेंट करेंगे? वे अब इस मसार में कहाँ रहे ? परमात्मा यहाँ है कहाँ ? पर नही, परमात्मा इस मसार में न रहे तो न सही। परमात्मा तक यह वस्तु न पहुंचे तो न सही अत्यधिक प्रेम के कारण हमारे हृदय में उनके प्रति इस तरह उत्पन्न हुए वे पूज्य-भाव अति तीव्र गति से उन तक अवश्य पहुंच जाते हैंमानो हमारा साक्षात्कार हो चुका-इसमें कोई सन्देह नहीं।
स्वय न साकर, उन पदार्थों को अपने लिए उपभोग में न लेकर और उन पदार्थो का मोह छोडकर इस तरह परमात्मा के बहुमान मे बडी खुशी से उन्हें अर्पण
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