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जबरदस्ती हड़पने की कोशिश करूँ, यह मेरी कितनी नादानी है। बेहतर है इससे मेरा प्राणान्त ही हो जाय ।
" माता पिता ने मुझे बडा कर दिया, यह उनका मेरे ऊपर बडा उपकार हुआ है । इससे अधिक मैं उनसे और क्या चाहता हूँ ? उचित तो यही है कि इस उपकार का बदला, उनकी बुढापे में सेवा करके, चुका दूँ । ऐसा न करके उल्टे मैं उनसे, तुच्छ स्वार्थ के लिए कलह करूँ, इससे अधिक और क्या मेरी भूल हो सकती है ? में उनके दुख का कारण बनू यह मेरे लिए अत्यन्त अशोभनीय बात है |
"यदि मेरी आय से दो मनुष्यो का पेट नही भरता तो मुझको विवाह नही करना चाहिए। ऐसा करने से अन्याय का प्रश्रय लेना पड सकता है जो मेरे लिए आत्म-घात से भी अधिक बुरा होगा । मुझे मेरे बच्चो का लालन-पालन बडी खुशी और न्याय - पूर्वक करना चाहिए । अकारण उनके मन को चोट पहुँचे या उनके मन मे शका पैदा हो ऐसा कोई भी कार्य करना मेरे लिए उचित नही । मुझको वही कार्य करना चाहिए जिससे वे बल और बुद्धि में किसी भी तरह से अयोग्य न रहे । वे तो अवोध है, मेरे आश्रित है। उनकी पूरी जिम्मेवारी मेरे ही ऊपर है । यही मेरी सच्ची सम्पत्ति है जिसे मे भविष्य में समाज को भेट करने जा रहा हूँ ।
"मेरी यह दलील कि मेरी आय कम है, कभी नही सुनी जा सकती लालन-पालन ठीक से न कर सकने वाले माता-पिता को बच्चे पैदा करने का कोई अधिकार नही । ऐसी स्थिति में मुझे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए था । वच्चो को अयोग्य रखना समाज को ही नही, समाज की नीव को धक्का पहुँचाना है । ससार में यदि कोई वडा से बडा पाप है तो वह अपने बच्चे को अयोग्य रखना ही है ।
"जब में मनुष्य हूँ तो मुझे दीन होने की क्या आवश्यकता है ? मैं मृत्यु का आलिंगन करना अच्छा समझूगा अपेक्षाकृत इसके कि किसी के आगे जाकर हाथ पसारू । मेरे लिए किसी को कष्ट देना उचित नही है । यदि मेरी स्थिति ? खराब हो गई है तो सोचना चाहिए कि मेरी ऐसी स्थिति होने का कारण क्या है मनुष्य प्राय. तीन तरह से दुखी होता है--स्वकृत, समाजकृत, एव देवकृत ।
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