Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 67
________________ यदि ऐमा निर्णय हम ससार के सामने रखेंगे तो साधारण जन, और कुछ छोडें अथवा न छोडें, बुरे का वहाना बनाते हुए इसे तो अवश्य छोड़ बैठेंगे । जैसे पूजा, दया, दान आदि को बुरा बताने की देर थी कि अनेक भाई उन्हें तबियत से छोड बैठे । 1 ( हालांकि अन्य बुराइयो को लाख समझाने पर भी आज तक उन्होने नही छोड़ा ) । स्वतत्रता की सास ली । मन में प्रमन्न हुए, सोचा - "चलो काया- कप्ट और खर्च की आफत से बचे ।" धर्म-कार्य मे तो यो ही रुचि कम होती है फिर ऐमा नहारा मिल जाय तो कहना ही क्या ? यह यहाँ, बुराई श्रीर कमजोरी में जो अन्तर है, उसे समझ हमें निर्णय करना चाहिए । तो 'गुरु का मोह ही था जिसने गोतम स्वामी को केवलज्ञान के दरवाजे तक पहुँचाया। मोटर घर के दरवाजे पर लाकर छोड़ दे, फिर घर के भीतर पहुँचने के लिए मोटर छोटे या नही ? मोक्ष पहुँचने के लिए शरीर और साधुवेश छोडे या नही? 'केवल - जान' की अपेक्षा से 'गुरु का मोह' भले निम्नतर हो पर गुरु के मोह की करामात देखिए- "ऊँचा हो ऊँचा ले जाता हुआ, लक्ष्य प्राप्ति के अन्तिम क्षण तक नाय देता है और कभी नीचे नही गिरने देता । लक्ष्य को जब चाहें प्राप्त कर लें ।" जिसके सहारे के बिना लक्ष्य तक पहुँचना तो दूर रहा, लक्ष्य को समझना ही बनम्भव है | भला, उमे हम बुरा समझें, बुरा कहें । राग और द्वेप को बुरा कहना मरल है पर हमारा मार्ग सरल कैसे बनेगा, उन्हें छोडने में हम मफल कैसे होगे यह समझना अति कठिन है। दोनो को एक नाथ छोडना माधारण जीवो के लिए न कभी सभव हुआ है और न हो सकता है । पहले हमें द्वेप कम करना होगा । इसके लिए हमे राग को और भी जोरो से अपनाना पड़ेगा । इस तरह जब हम द्वेप को कम करने में सफल हो जायेंगे तब हम वीरे -२ राग को भी कम कर सकेंगे। हमारी अपनी स्थिति को देखते हुए यदि इस प्रकार के राग को बुरा समझ कर नही अपनायेंगे तो हमारे में रहे राग को कम करना या छोडना तो दूर रहा, हम द्वेप को भी कम नही कर सकेंगे । ऐसे मोक्ष मार्ग के जाननहार महान् तेजस्वी रत्न, स्वामी श्री भीखणजी ने मूर्ति-पूजा में ही पत्थर नही बतलाया चीटियो को बचाने मे भी पत्थर वतलाकर अपनी अभूतपूर्व प्रतिभा का परिचय दिया है । ९७

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