Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 75
________________ विकृत होने लगता है। अत जिस 'समाज' को हम अपने लिए रक्षा की ढाल समझते है, उल्टे हमारे प्राण ले लेता है। महात्म गाधी के प्राण समाज ही ने लिए। युद्ध समाज ही लडता है। हमे यह देखना है कि इतनी सुन्दर वस्तु में यह खरावी क्यो उत्पन्न हो जाती है ? आखिर इस सडान के क्या कारण है ? यह सडान कैसे रोकी जा सकती है ताकि हम अपनी इच्छित शान्ति को अक्षुण्ण रख सके । कइयो की ऐसी धारणा है कि भूख ही के कारण लोग लाचार हो जाते हैं और विकृति उन्हें जवरदस्ती धर दवाती है। ऐसी स्थिति मे ज्ञान-ध्यान धरा रह जाता है। __ मानते है कि कई एक ऐसे प्रसग उपस्थित हो जाते है जहाँ मनुष्य की इच्छा न होते हुए भी, कारणो से विवश होकर उसे विकृत होना पडता है। पर कारणो से अपनाइ गई विकृति क्षणिक होती है और किसी अग में उसे विकृति न कहना ही ठीक है। वह तो एक भौतिक पदार्थों की छोना-झपटी है जो आज्ञानता के कारण उत्पन्न हुई हमारी कमजोरी है। कमजोरी और विकृति मे अन्तर है। रेल मे जगह कम होतो एक दूसरे को धक्का देकर भी हम बैठने की कोशिश करते हैं। यहाँ किसी को धक्का मारने का भाव नही होता। पर-साधन, विवेक और त्याग-भावना की कमी के कारण ऐसा कर बैठते है। भौतिक पदार्थों की कमी में मनुष्य को सयम से काम लेना सीखना चाहिए। मान लीजिये अकाल पड गया। सभी चाहेंगे कि पेट भर कर खाना मिले। पूरा न मिला तो क्या एक दूसरे को मार डालेगे ऐसा करना हमारे लिये ही अहितकर होगा। अपने से कमजोर को यदि हम मार डालते है तो हमसे ताकतवर हमें मार डालने में क्यो सकोच करेंगे। फिर हमने अपना ख्याल भी कहाँ रक्खा ? समाज रचना को कहाँ समझा ? खुशी दिल से आधे-पेट रहना, लड-झगडकर भरे-पेट से हजार गुनी अविक ताकत उत्पन्न करता है। पर यह सव तव होता है जब हमें पूरा ज्ञान हो और समाज की शक्ति को हम समझते हो। अकेली गाय सिंह का सामना नही कर सकती। दस बीस सघटित होती है तो रक्षा-व्यूह बना कर सव की सव वच जाती हैं। हम तो मनुष्य है। किसी भी स्थिति का सामना करके वच सकते है। हममें ज्ञान, धैर्य, प्रेम और विश्वास होना चाहिए। यदि अच्छे १२३

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