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- स्वामी श्री भीखणजी ने इसे क्यो पाप पूर्ण समझा और वह क्यो अनुचित है? इस सम्बन्ध में विचार करना यहाँ उचित है। "मरने वाला मरता है, मारने वाला मारता है, कोई बुरा मानेगा कोई भला, हम वीच में पड़ व्यर्थ राग, द्वेप क्यों मोल लें? हम अपनी तटस्थता को क्यो त्यागे?" ऐसी तटस्थता का भग जान, या अपनी शान्ति और स्वाध्याय में वाधा जान, बुरा समझा हो तो ऐसा हो सकता है। वालक उपदेश से (ज्ञान से) न बचाया जाकर शक्ति-पूर्वक, 'पाप' से बचाया गया इसलिए बुरा समझा हो तो ऐसा हो सकता है। “अवती चीटियो को बचाने के उद्देश्य से कार्य किया गया", इसलिए बुरा समझा हो तो ऐसा हो सकता है । और तो कोई कारण दिखाई नहीं देता।
पर सिद्धो जैसी तटस्थता की नीति तो स्वामीजी भी नहीं अपना सके। उनके शिष्य भी नहीं अपना सके। आज भी उनके शिष्य नही अपना रहे है। उपदेशो का तारतम्य तो जोरो से चालू ही है। भवि जीवो को तारने का ठेका तो उनकी तरफ से चल ही रहा है। तब ऐसी तटस्थता या अक्रियशीलता की वकालत वे किस मुह से करे? इसलिए इस सम्बन्ध मे हम निश्चिन्त हुए। ___ "अब शक्ति-पूर्वक जीव को पापो से बचाने और अवती जीव के जीवन को बचाने पर," विचार करना शेप रहा। पर स्वामीजी ने भी ज्ञान द्वारा समझा कर हिंसा छुडाने को तो धर्म पूर्ण ही माना है ।*
तव इतना कहा जा सकता है कि बालक को पाप से बचाने के लिए, उपदेश द्वारा उसका वह पाप-पूर्ण कार्य उसी से रुकवा सकते तो स्वामीजी श्री को हमें अवश्य अच्छा समझना ही पडता जैसा कि बकरे मारने वाले के उद्धार पर, उ होने अपने शिष्यो को अच्छा समझा है। तब चीटियो के वचने पर भी, उनको बचाने का कोई प्रश्न ही खडा नही किया जाता और न उस कार्य को बुरा ही माना जाता।
स्वामीजी ने अपने शिष्यो को इस तरह अच्छा तो समझा पर मन की भावनामो को अभी अलग रख कर हम यह देखे कि उन मुनिराजों और हमारे
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*भिक्षु दृष्टान्त १२८, पृष्ठ-५४ ... जद स्वामीजी बोल्या : ज्ञान सुं समझाय ने हिंसा छोड़यां तो धर्म छ ।
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