Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ करते हैं। साहित्य प्रकाशन के व्यवहार को ही लीजिए, क्या यह किसी के लिए मजबूरी है ? क्या विपयो और कषायो के जोश में ऐसा किया जा रहा है ? फिर सहज ही त्याज्य ऐसी हिंसा को भी अपनाते जाना और न चाहने पर भी लोगो को करने के लिए प्रेरित करना, उनसे चदे मागना, उन्हें सब्ज वाग दिखाना, आखिर किस लिए ? हिंसा करने का वढावा देने के लिए या भविष्य के किसी लाभ के लिए? ___ भूतकाल मे ऐसी हिंसा ये नही छोड सके उसका इन्हें पूरा दुख है, भविष्य में भी ऐसी हिंसा छोड़ने की इनकी पक्की भावना है। सिर्फ वर्तमान में अपनी इक्छानुसार चर्खा चलाते रहना है। गलत मान्यताएं अनेक अनियमितताओं को कारण-भावार्थ यही है कि इस तरह के व्यवहारो को हिंसामुक्त मानने से हमारे सामने अनेक अनियमिततायें उत्पन्न हो जायेगी। फिर हम धर्म के किनी क्षेत्र में भी नहीं ठहर सकेगे। एक तरफ हिंसापूर्ण क्रिया कम होगी तो दूसरी तरफ धर्म की प्राप्ति । जैसे मुनिराज को दान देने की शुद्ध क्रिया को ही लीजिये। मुनिराज को दान देकर लाभ ले, या उन दिये जाने वाले पदार्थो को न देकर, भविष्य की कुछ हिंसा ही को कम करने का लाभ लें? (यानी जो कुछ मुनिराज को देना चाहते है उन्हें न देकर, बचा कर अपने पास रख लें। उनोदरी तप का कहे तो वह भी शक्ति अनसार रखते चले। जब भी खाने-पीने की आवश्यकता आ जाय, उन बचाये गये पदार्यों से जितना काम निकल सके, निकाल ले। इस तरह उतने अन्य पदार्थ व्यवहार मे लेकर जो हिंसा करते वह निश्चय ही टल जायेगी।) कहिये आत्मा क्या गवाही देती है ? मुनिराज को देने से अधिक लाभ होगा या हिंसा को कम करने से ? कम-से-कम हिंसा को अपना कर अपना कार्य चला लेने की भावना रखनेवाले इस पर अवश्य विचार करें। __हिंसा को हिंसा समझ कर आवश्यकतानुसार अपनाने वाले ऐसी सहज ही में कम की जा सकने वाली हिंसा को भी क्यो अपनाये बैठे हैं ? क्या उनकी हिसा छोड़ने की रचि नहीं है? दूसरोही से हिंसा छड़वाना चाहते है? हम लोगो के स्पष्ट मत में हिंसा तीन काल में भी स्वीकार नही की जा सकती, न उसका समर्थन ही किया जा सकता है। वह सदा के लिए बुरी है। क्रिया जब निर्मल उद्देश्य के प्रभाव से 'अहिंसा' की कोटि में आ जाती है (ठीक उसी प्रकार जिस

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135