Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः
२५ सिद्धि-(१) पञ्चाश्वा । पञ्चाश्व+ठक्। पञ्चाश्व+0 । पश्चाश्व+टाप्। पञ्चाश्वा+सु। पञ्चाश्वा।
यहां तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५०) से तद्धितार्थ में द्विगु समास, तेन कृतम्' (५।१।३६) से तद्धित ठक्' प्रत्यय और 'अध्यर्धपूर्वाद् द्विगोलुंगसंज्ञायाम्' (५।१।२८) से 'ठक' प्रत्यय का लुक होता है। इस तद्धित प्रत्यय के लुक होने पर इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय का प्रतिषेध है। अत: 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-दशाश्वा।
(२) द्विवर्षा । द्विवर्ष+ठक् । द्विवर्ष+० 1 द्विवर्ष+टाप् । द्विवर्षा+सु । द्विवर्षा ।
यहां पूर्ववत् द्विगु समास, 'तमधीष्टो भृतो भूतो भावी' (५।१।७९) से ठक्' प्रत्यय और वर्षाल्लुक्' (५।११८७) से ठक्’ प्रत्यय का लुक् है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे-त्रिवर्षा ।
(३) द्विशता । द्विशत+यत् । द्विशत+० । द्विशत्+टाप् । द्विशता+सु। द्विशता।
यहां पूर्ववत् द्विगु समास, 'शाणाद् वा-वा- 'शताच्चेति वक्तव्यम्' (५।१।३५) से यत्' प्रत्यय और 'अध्यर्धपूर्वाद्' (५।१।२८) से यत्' प्रत्यय का लुक होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-त्रिशता।
(४) द्विबिस्ता। द्विबिस्त+ठक। द्विबिस्त+०। द्विबिस्त+टाप् । द्विबिरता+सु। द्विबिस्ता।
यहां पूर्ववत् द्विगु समास, 'सम्भवत्यवहरति पचति' (५।१।५१) से ठक्' प्रत्यय और पूर्ववत् उसका लुक् होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-त्रिबिस्ता।
(५) याचिता । द्वयाचित+ष्ठन्। द्वयाचित+० । द्वयाचित+टाप् । द्वयाचिता+सु। द्वयाचिता।
यहां पूर्ववत् द्विगु समास, 'आढकाचितपात्रात् खोऽन्यतरस्याम्' (५।१।५२) की अनुवृत्ति में द्विगो: ष्ठश्च' (५।११५३) से ष्ठन्' प्रत्यय और पूर्ववत् उसका लुक् होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-त्र्याचिता।
(६) द्विकम्बल्या। द्विकम्बल्य+ठक् । द्विकम्बल्य+०। द्विकम्बल्य+टाम् । द्विकम्बल्या+सु। द्विकम्बल्या।
यहां सब कार्य 'पञ्चाश्वा' (१) के समान है। ऐसे ही-त्रिकम्बल्या।
कम्बल्य शब्द में 'कम्बलाच्च संज्ञायाम् (५।१।३) से 'यत्' प्रत्यय है। कम्बल+यत् । कम्बल्यम्। यह १०० पल (छटांक) ऊन की संज्ञा है। डीप्-प्रतिषेधः
(१६) काण्डान्तात् क्षेत्रे।२३। प०वि०-काण्डान्तात् ५ ।१ क्षेत्रे ७१ ।
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