Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

View full book text
Previous | Next

Page 572
________________ ५३५ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः उदा०-हृदय (अन्त:करण) का बन्धन एकाग्र करने का साधन-हृद्य ऋषि वेदमन्त्र (प्रणव ओ३म् का जप और उसके अर्थ का भावन) तथा गायत्री महामन्त्र आदि। सिद्धि-हृद्य:' पद की सिद्धि पूर्ववत् (४।४।९५) है। करणाद्यर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (यत्) (१) मतजनहलात् करणजल्पकर्षेषु।६७। प०वि०-मत-जन-हलात् ५।१ करण-जल्प-कर्षेषु ७।३ । स०-मतं च जनश्च हलश्च एतेषां समाहारो मतजनहलम्, तस्मात्-मतजनहलात् (समाहारद्वन्द्व:)। करणं च जल्पश्च कर्षश्च ते करणजल्पकर्षाः, तेषु-करणजल्पकर्षेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-यत् इत्यनुवर्तते। अत्र प्रत्ययार्थसामर्थ्यात् षष्ठीसमर्थविभक्तिर्गृह्यते। अन्वय:-षष्ठीसमर्थाद् मतजनहलाद् यथासंख्यं करणजल्पकर्षेषु यत् । अर्थ:-षष्ठीसमर्थेभ्यो मतजनहलेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यो यथासंख्यं करणजल्पकर्षेष्वर्थेषु यथाविहितं यत् प्रत्ययो भवति। उदा०-(मतम्) मतस्य (ज्ञानस्य) करणम्-मत्यं वेदचतुष्टयम् । (जन:) जनस्य जल्प:-जन्यः। (हल:) हलस्य कर्ष:-हल्यः । आर्यभाषा अर्थ-षष्ठी-समर्थ (मतजनहलात्) मत, जन, हल प्रातिपदिकों से यथासंख्य (करणजल्पकर्षेषु) करण, जल्प, कर्ष अर्थों में (यत्) यथाविहित यत् प्रत्यय होता है। यहां प्रत्ययार्थ के सामर्थ्य से षष्ठी-समर्थ विभक्ति का ग्रहण किया जाता है। उदा०-(मत) मत (ज्ञान) का करण (साधन)-मत्य (चार वेद)। (जन) जन (व्यक्ति) का जल्प (प्रलाप-बकवाद)-जन्य। (हल) हल का कर्ष (चलाना)-हल्य। सिद्धि-मत्यम् । मत+डस्+यत् । मत्+य। मत्य+सु। मत्यम्। यहां षष्ठी-समर्थ 'मत' शब्द से करण-अर्थ में इस सूत्र यथाविहित प्राग-हितीय यत्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-जन्य:, हल्य:। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624