Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 602
________________ ५६५ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः कृतार्थप्रत्ययविधिः इनः+यः+ख: (१) पूर्वैः कृतमिनयौ च।१३३। प०वि०-पू: ३।३ कृतम् ११ इन-यौ १।२ च अव्ययपदम् । स०-इनश्च यश्च तौ-इनयौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । अनु०-छन्दसि, ख इति चानुवर्तते । अत्र पूर्वैः' इति तृतीयानिर्देशात् तृतीयासमर्थविभक्तिर्गृह्यते। अन्वय:-छन्दसि तृतीयासमर्थात् पूर्व-शब्दात् कृतम् इनयौ खश्च । अर्थ:-छन्दसि विषये तृतीयासमर्थात् पूर्वशब्दात् प्रातिपदिकात् कृतमित्यस्मिन्नर्थे इनयौ खश्च प्रत्यया भवन्ति । उदा०- (इन:) पूर्वैः कृत:-पूर्विण:। (य:) पूर्व्यः । (ख:) पूर्वीण: । ‘गम्भीरेभिः पथिभिः पूर्विणेभिः' (का०सं० ९ ।६।१९)। 'पूर्व्यः' (तै०सं० १।८।५।२)। _अत्र पूर्वैः' इति बहुवचनान्तनिर्देशेन पूर्वपुरुषा उच्यन्ते । तैः कृता: पन्थान: प्रशस्ता: सन्तीति तेषां पथां प्रशंसा क्रियते। आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में, ततीया-समर्थ, (पूर्वैः) पूर्व प्रातिपदिक से (कृतम्) बनाया हुआ अर्थ में (इन-यौ) इन, य (च) और (ख:) ख प्रत्यय होते हैं। उदा०-(इन) पूर्व-पूर्वजों के द्वारा कृत-बनाया हुआ पन्था (मार्ग)-पूर्विण। (य) पूर्व्य। (ख) पूर्वीण। 'गम्भीरेभिः पथिभिः पूर्विणेभिः' (का०सं ९।६।१९)। पूर्व्यः' (तै०सं० १।८।५।२)। यहां 'पूर्वैः' इस बहुवचनान्त निर्देश से पूर्वजों का कथन किया गया है। उनके द्वारा कृत बनाये हुये पथ (मार्ग) प्रशंसनीय हैं, इस प्रकार उनके पथों की प्रशंसा की जाती है। सिद्धि-(१) पूर्विणः । पूर्व+भिस्+इन । पूर्व+इण। पूर्विण+सु। पूर्विणः । यहां तृतीया-समर्थ पूर्व' शब्द से कृत-अर्थ में इस सूत्र से 'इन' प्रत्यय है। यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। 'अट्कुप्वाङ्' (८।४।२) से णत्व होता है। (२) पूर्व्य: । यहां पूर्व' शब्द से पूर्ववत् 'य' प्रत्यय है। (३) पूर्वीण: । यहां पूर्व' शब्द से 'ख' प्रत्यय है। 'आयनेयः' (७।१।२) से 'ख' के स्थान में 'ईन्' आदेश और पूर्ववत् णत्व होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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