Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः सिद्धि-सतीर्थ्य: । समानतीर्थ+डि+यत् । स-तीर्थ+य। सतीर्थ्य+सु। सतीर्थ्य: ।
यहां सप्तमी-समर्थ समान-तीर्थ' शब्द से वासी अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग-हितीय यत् प्रत्यय है। 'तीर्थे ये' (६।३।८७) से 'समान' के स्थान में 'स' आदेश होता है।
शयितार्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (यत्)
(१) समानोदरे शयित ओ चोदात्तः।१०८ ।
प०वि०-समान-उदरे ७१ शयित: ११ ओ ११ (सु-लुक्) च अव्ययपदम्, उदात्त: १।१ ।
स०-समानं च तद् उदरम्-समानोदरम्, तस्मिन्-समानोदरे (कर्मधारय:)।
अनु०-तत्र, यत् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र समानोदराच्छयितो यद् ओश्चोदात्तः।
अर्थ:-तत्र इति सप्तमीसमर्थात् समानोदर-शब्दात् प्रातिपदिकाच्छयित इत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं यत् प्रत्ययो भवति, ओकारश्चोदात्तो भवति ।
उदा०-समानोदरे शयित:-समानोदर्यो भ्राता । शयित: स्थित इत्यर्थः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-समर्थ (समानोदरे) समानोदर प्रातिपदिक से (शयित) स्थित अर्थ में (यत्) यथाविहित यत् प्रत्यय होता है (च) और उसका (ओ) ओकार (उदात्त:) उदात्त होता है।
उदा०-समान (एक) उदर में जो शयित-स्थित रहा है वह-समानोदर्य भ्राता (सगा भाई)।
सिद्धि-समानोदर्यः । समानोदर+डि+यत् । समानोदर्+य। समानोदर्य+सु । समानोदर्यः।
यहां सप्तमी-समर्थ समानोदर' शब्द से शयित (स्थित) अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है और समानोदर' शब्द का ओकार उदात्त है। यत्' प्रत्यय के तित् होने से तित् स्वरितम्' (६।१।१८५) से स्वरित स्वर प्राप्त था, अत: ओकार का उदात्त स्वर विधान किया गया है-समानोदयः ।
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