Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थात् पितृष्वसृशब्दाद् प्रातिपदिकाद् अपत्यमित्यस्मिन्नर्थे ढकि प्रत्यये परतोऽन्त्यस्य ऋवर्णस्य लोपो भवति ।
उदा०-पितृष्वसुरपत्यम्-पैतृष्वसेयः ।
आर्यभाषा अर्थ- (तस्य) षष्ठी-समर्थ (पितृष्वसुः) पितृरवसा प्रातिपदिक से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (ढकि) ढक् प्रत्यय परे होने पर (लोप:) पितृस्वस के अन्त्य ऋवर्ण का लोप होता है।
उदा०-पितृष्वसुरपत्यम्-पैतृष्वसेयः । पिता की बहिन (बूआ) का बेटा-पैतृष्वसेय। सिद्धि-पैतृष्वसेयः । पितृष्वस+डस्+ढक् । पैतृष्वस्+एय। पैतृष्वसेय+सु। पैतृष्वसेयः ।
यहां षष्ठी-समर्थ 'पितृष्वसृ' शब्द से अपत्य अर्थ में 'ढक्' प्रत्यय करने पर पितृष्वसृ' शब्द के अन्त्य वर्ण ऋ' का इस सूत्र से लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
विशेष-पितृष्वसृ शब्द से किसी सूत्र से ढक् प्रत्यय का विधान नहीं किया गया है। यहां आचार्य पाणिनिमुनि द्वारा ढक् प्रत्यय परे होने पर जो लोप विधान किया गया है इससे ज्ञात होता है कि पितृष्वसृ' शब्द से ढक् प्रत्यय होता है। ढक+छण्
(२) मातृष्वसुश्च ।१३४। प०वि०-मातृष्वसु: ५ ।१ च अव्ययपदम् । स०-मातु: स्वसा इति मातृष्वसा, तस्या:-मातृष्वसुः (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-तस्य, अपत्यम्, ढकि लोपश्छण् च।
अन्वय:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाद् मातृष्वसृशब्दात् प्रातिपदिकाद् अपत्यमित्यस्मिन्नर्थे ढकि परतोऽन्त्यस्य ऋवर्णस्य लोपो भवति, छण् च प्रत्ययोऽपि भवति।
उदा०- (ढक्) मातृष्वसुरपत्यम्-मातृष्वसेयः। (छण्) मातृष्वसुरपत्यम्-मातृष्वस्रीयः।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (मातृष्वसुः) मातृष्वसृ प्रातिपदिक से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (ढकि) ढक् प्रत्यय परे होने (लोप:) मातृष्वसृ शब्द के अन्त्य ऋवर्ण का लोप होता है (च) और (छण) छण् प्रत्यय भी होता है।
उदा०- (ढक्) मातृष्वसुरपत्यम्-मातृष्वसेय: । माता की बहिन (मा-सी) का बेटा। (छण्) मातृष्वसुरपत्यम्-मातृष्वत्रीयः। माता की बहिन का बेटा-मातृष्वस्त्रीय।
सिद्धि-मातृष्वसेय: और मातृष्वतीय: शब्दों की सिद्धि पूर्ववत् (४।१।१३२-३३) है।
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