Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(सा) प्रथमा-समर्थ (फाल्गुनी०चैत्रीभ्यः) फाल्गुनी, श्रवणा, कार्तिकी, चैत्री प्रातिपदिकों से (अस्मिन्) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (विभाषा) विकल्प से (ठक्) ठक् प्रत्यय होता है (पौर्णमासी) जो प्रथमा समर्थ है यदि वह पौर्णमासी (इति) संज्ञा- विशेष हो।
उदा०-(फाल्गुनी) फाल्गुनी पौर्णमासी अस्मिन् स:-फाल्गुनिकः, फाल्गुनो वा मास: । फाल्गुन पौर्णमासीवाला-फाल्गुनिक, वा फाल्गुन मास। (श्रवणा) श्रवणा पौर्णमासी अस्मिन् स:-श्रावृणिकः, श्रावणो वा मास: । श्रवणा पौर्णमासीवाला-श्रावणिक वा श्रावण मास। (कार्तिकी) कार्तिकी पौर्णमासी अस्मिन् स:-कार्तिकिक., कार्तिको वा मासः । कार्तिकी पौर्णमासीवाला-कार्तिकिक वा कार्तिक मास। (चैत्री) चैत्री पौर्णमासी अस्मिन् स:-चैत्रिका, चैत्रो वा मास: । चैत्री पौर्णमासीवाला-चैत्रिक वा चैत्र मास ।
सिद्धि-(१) फाल्गुनिक: । फाल्गुनी+सु+ठक् । फाल्गुन्+इक। फाल्गुनिक+सु। फाल्गुनिकः।
यहां प्रथमा-समर्थ फाल्गुनी' शब्द से सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में इस सूत्र से ठक्' प्रत्यय है। ठस्येकः' (७।३।५०) से 'ठ' के स्थान में 'इक्' आदेश होता है। यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के ईकार का लोप और किति च' (७।२।११७) से पर्जन्यवत् सूत्रप्रवृत्ति होने से अंग को आदिवृद्धि होती है।
(२) फाल्गुन: । फाल्गुनी+सु । अण् । फाल्गुन्+अ। फाल्गुन+सु। फाल्गुनः । ____ यहां पूर्ववत् फाल्गुनी शब्द से विकल्प पक्ष में प्राग्दीव्यतोऽण्' (४।१।८३) से अण् प्रत्यय होता है। पूर्ववत् ईकार का लोप और तद्धितेष्वचामादे:' (७।२।११७) से पर्जन्यवत् सूत्रप्रवृत्ति होने से अंग को आदिवृद्धि होती है। ऐसे ही-श्रावणिकः, श्रावणः । कार्तिकिक:, कार्तिकः । चैत्रिकः, चैत्रः ।
नक्षत्रपौर्णमासविवरणम् नक्षत्रम् पौर्णमासी
मास: चित्रा
चैत्रिक: चैत्रः। विशाखा
वैशाखी ज्येष्ठा ज्यैष्ठी
ज्यैष्ठः। आषाढा आषाढी
आषाढ:। श्रवण श्रवणा
श्रावणिकः, श्रावणः भाद्रपदा भाद्रपदी
भाद्रपदः। अश्विनी आश्विनी
आश्विनः। (अश्वत्थ) (अश्वत्था)
(आश्वत्थिक:)
चैत्री
वैशाखः।
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