Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 553
________________ ५१६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् व्यवहरति-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक्) (१) कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानेषु व्यवहरति।७२। प०वि०-कठिनान्त-प्रस्तार-संस्थानेषु ७ ।३ (पञ्चम्यर्थे) व्यवहरति क्रियापदम्। स०-कठिनम् अन्ते यस्य तत् कठिनान्तम्, कठिनान्तञ्च, प्रस्तारश्च, संस्थानं च तानि कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानानि, तेषु-कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानेषु (बहुव्रीहिगर्भितइतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-तत्र, ठक् इति चानुवर्तति। अन्वय:-तत्र कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानेभ्यो व्यवहरति ठक् । अर्थ:-तत्र इति सप्तमीसमर्थेभ्य: कठिनान्त-प्रस्तार-संस्थानेभ्य: प्रातिपदिकेभ्यो व्यवहरतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति। व्यवहरतिरिति सम्भवति-पणिना समानार्थ:, यथाऽऽह 'व्यवहृपणो: समर्थयो:' (२।३ ।५७) इति । अस्ति विवादे-व्यवहारे पराजित इति । अस्ति विक्षेपे-शलाकां व्यवहरतीति। अस्ति क्रियातत्त्वे । अत्र क्रियातत्त्वात्मकस्य व्यवहारस्य ग्रहणं क्रियते। उदा०-(कठिनान्तम्) वंशकठिने व्यवहरति-वांशकठिनिकश्चक्रचरः । वार्धकठिनिकः । (प्रस्तारः) प्रस्तारे व्यवहरति-प्रास्तारिकः । (संस्थानम्) संस्थाने व्यवहरति-सांस्थानिकः । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-समर्थ (कठिनान्तप्रस्तारसंस्थानेषु) कठिन शब्द जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से, प्रस्तार और संस्थान प्रातिपदिकों से (व्यवहरति) उचित व्यवहार करता है अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है। उदा०-(कठिनान्त) वंशकठिन-कठिन वंश (बांस) वाले देश में जो यथोचित व्यवहार करता है, अपनी गाड़ी को ठीक-ठीक चलाता है वह-वांशकठिनिक चक्रचर (चक्रयुक्त गाड़ी से घूमनेवाला)। वर्धकठिन कठिन वर्धा (तसमा, बाधी) वाले स्थान में जो यथोचित व्यवहार करता है वह-वार्धकठिनिकः । (प्रस्तार) फूल-पत्तों से संवारी सेज (शय्या) पर जो यथोचित व्यवहार करता है वह-प्रास्तारिक। (संस्थान) शिक्षण संस्थान में जो यथोचित व्यवहार करता है वह-सांस्थानिक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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