Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः
५१७ सिद्धि-वांशकठिनिकः । वंशकठिन+डि+ठक् । वांशकठिन्+इक । वांशकठिनिक+सु। वांशकठिनिकः।
यहां सप्तमी-समर्थ, कठिनन्त वंशकठिन' शब्द से व्यवहरति' अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
विशेष: 'व्यवहरति' शब्द अनेकार्थ है जैसे-व्यापार करता है, विवाद करता है, जूआ खेलता है किन्तु यहां व्यवहरति’ शब्द क्रियातत्त्व (यथोचित व्यवहार) अर्थ में ग्रहण किया गया है।
वसति-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक)
(१) निकटे वसति।७३। प०वि०-निकटे ७।१ (पञ्चम्यर्थे) वसति क्रियापदम् । अनु०-तत्र, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र निकटाद् वसति ठक् ।
अर्थ:-तत्र इति सप्तमीसमर्थाद् निकट-शब्दात् प्रातिपदिकाद् वसतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति ।
यस्य शास्त्रेण निकटवासो विहितस्तत्रायं प्रत्ययविधिर्भवति यथा'आरण्यकेन भिक्षुणा ग्रामात् क्रोशे वस्तव्यम्' इति शास्त्रम्।
उदा०-निकटे वसति नैकटिको भिक्षुः (संन्यासी)।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-समर्थ (निकटे) निकट प्रातिपदिक से (वसति) बसता है अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है।
जिसका शास्त्र के द्वारा निकट-वास विधान किया गया है वहां यह प्रत्ययविधि होती है जैसे कि “अरण्यवासी भिक्षुक को ग्राम से एक कोस दूर बसना चाहिये” ऐसा शास्त्र का विधान है।
उदा०-जो शास्त्रोक्त विधि से ग्राम के निकट बसता है वह-नैकटिक भिक्षु (संन्यासी)।
सिद्धि-नैकटिकः । यहां सप्तमी-समर्थ निकट' शब्द से वसति-अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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