Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
५३५
चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः प्रातिपदिकम् अर्थ:
शब्दरूपम् (५) मूलम् आनाम्यम् मूलेनाऽऽनाम्यम् (अभिभवनीयम्)
मूल्यम् (लभ्यम्)। (६) मूलम्
समम् मूलन सम. मूलेन सम:-मूल्य: पटः।
. (७) सीता समितम् सीतया समितम्-सीत्यं क्षेत्रम्। (८) तुला सम्मितम् तुलया सम्मितम्-तुल्यं घृतम्।
आर्यभाषा: अर्थ-तृतीया-समर्थ (नौ०तुलाभ्यः) नौ, वयः, धर्म, विष, मूल, मूल, सीता, तुला इन आठ प्रातिपदिकों से यथासंख्य (तार्यसम्मितेषु) तार्य, तुल्य, प्राप्य, वध्य, आनाम्य, सम, समित, सम्मित इन आठ अर्थों में (यत्) यथाविहित यत् प्रत्यय होता है। यहां प्रत्ययार्थ के द्वार से तृतीया-समर्थ विभक्ति का ग्रहण किया जाता है।
उदा०-(नौ) नौ-नौका से जो तार्य=तरने योग्य है वह-नाव्य जल । नाव्या नदी। (वय:) वय आयु से जो तुल्य है वह-वयस्य सखा (मित्र)। (धर्म) धर्म से जो प्राप्य है वह-धर्म्य सुख। (विष) विष जहर से जो वध्य है वह-विष्य शत्रु । (मूल) मूल (सुवर्ण आदि) से जो आम्नाय (आलभ्य) है वह-मूल्य (लाभ)। पट आदि की उत्पत्ति का कारण सुवर्ण आदि मूल है। उससे पट आदि का उत्पादन करके जो लाभ प्राप्त किया जाता है वह-मूल्य कहाता है। (मूल) मूल के जो सम (समान फलवाला) है वह-मूल्य पट (वस्त्र)। (सीता) हल चलाने से सम बराबर किया हुआ-सीत्य क्षेत्र (खेत)। (तुला) तखड़ी से सम्मित-तोला हुआ-तुल्य घी।
सिद्धि-नाव्यम् । नौ+टा+यत् । नाव्+य। नाव्य+सु । नाव्यम्।
यहां तृतीया-समर्थ नौ' शब्द से तार्य-अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्-हितीय यत्' प्रत्यय है। 'वान्तो यि प्रत्यये (६।१।७८) से वान्त (आव) आदेश होता है। ऐसे ही-वयस्य: आदि।
अनपेतार्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (यत्)
(१) धर्मपथ्यर्थन्यायादनपेते।१२। प०वि०-धर्म-पथि-अर्थ-न्यायात् ५।१ अनपेते ७।१।
स०-धर्मश्च पन्थाश्च अर्थश्च न्यायश्च एतेषां समाहारो धर्मपथ्यर्थन्यायम्, तस्मात्-धर्मपथ्यर्थन्यायात् (समाहारद्वन्द्व:)। अपेतम्-दूरम् । न अपेतमिति अनपेतम्, तस्मिन्-अनपेते (नञ्तत्पुरुषः) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org