Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः
उदा०-(सिन्ध्वादिः) सिन्धुरभिजनोऽस्य-सैन्धवः । वर्णुरभिजनोऽस्यवार्णवः (अण्) । ( तक्षशिलादि: ) तक्षशिलाऽभिजनोऽस्य-ताक्षशिलः । वत्सोद्धरणोऽभिजनोऽस्य वात्सोद्धरण: ( अञ्) ।
(१) सिन्धु । वर्णु। गन्धार । मधुमत् । कम्बोज । कश्मीर । साल्व । किष्किन्धा। गब्दिका। उरस । दरत् । कुलून । दिरसा । इति सिन्ध्वादयः ।।
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(२) तक्षशिला। वत्सोद्धरण। कौमेदुर । काण्डधारण । ग्रामणी । सरालक। कंस। किन्नर । संकुचित । सिंहकोष्ठ । कर्णकोष्ठ । बर्बर । अवसान । इति तक्षशिलादयः । ।
आर्यभाषाः अर्थ - ( स ) प्रथमा - समर्थ (सिन्धुतक्षशिलादिभ्यः ) सिन्धु - आदि और तक्षशिला-आदि प्रातिपदिकों से (अस्य) षष्ठी विभक्ति के अर्थ में यथासंख्य (अणञौ ) अण् और अञ् प्रत्यय होते हैं ।
उदा०- - (सिन्ध्वादि) सिन्धु है अभिजन इसका यह सैन्धव । वर्णु है अभिजन इसका यह-वार्णव (अण्) । (तक्षशिलादिः) तक्षशिला है अभिजन इसका यह-ताक्षशिल । वत्सोद्धरण है अभिजन इसका यह - वात्सोद्धरण।
सिद्धि - (१) सैन्धव: । सिन्धु + सु + अण् । सैन्धव् + अ । सैन्धव+सु । सैन्धवः ।
यहां प्रथमा-समर्थ, अभिजनवाची 'सिन्धु' शब्द से अस्य (इसका ) अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही - वार्णवः ।
(२) ताक्षशिल: । तक्षशिला+सु अञ् । ताक्षशिल्+अ । ताक्षशिल+सु । ताक्षशिलः । यहां प्रथमा-समर्थ, अभिजनवाची 'तक्षशिला' शब्द से 'इसका' अर्थ में इस सूत्र से 'अञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है। ऐसे ही - वात्सोद्धरण: ।
विशेष: (१) सिन्धु - प्राचीन सिन्धु नद आजकल की सिन्धु है । सिन्धु के नाम से उसके पूर्वी किनारे की तरफ पंजाब में फैला हुआ प्राचीन सिन्धु जनपद {सिन्धु-सागर दुआब था} (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ५० ) ।
(२) वर्णु - सिन्धु की पश्चिमी सहायक नदी कुर्रम के किनारे निचले हिस्से में बन्नू की दून (घाट) है। इसका वैदिक नाम क्रमु था। इसका ऊपरी पहाड़ी प्रदेश आज भी कुर्रम कहलाता है और निचला मैदानी भाग बन्नू। पाणिनि ने इसी को वर्णु नद के नाम से प्रसिद्ध वर्णु देश कहा है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ५१) ।
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