Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः अनु०-तत्, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वयः-तत् पक्षिमत्स्यमृगेभ्यो हन्ति ठक् ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थेभ्य: पक्षिमत्स्यमृगेभ्य: प्रातिपदिकेभ्यो हन्तीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति । अत्र स्वरूपस्य पर्यायवाचिनां तद्विशेषवाचिनां च ग्रहणमिष्यते।
उदा०-(१) पक्षी। पक्षिणो हन्ति-पाक्षिकः। (पर्याय:) शकुनीन् हन्ति-शाकुनिक: (तविशेष) मयूरान् हन्ति-मायूरिकः। तित्तिरान् हन्ति-तैत्तिरीकः।
(२) मत्स्य:। मत्स्यान् हन्ति-मात्स्यिकः। (पर्याय:) मीनान् हन्ति-मैनिक:। (तद्विशेष:) शफरान् हन्ति-शाफरिकः। शकुलान् हन्ति-शाकुलिकः।
(३) मृग: । मृगान् हन्ति-मार्गिकः । (पर्याय:) हरिणान् हन्तिहारिणिकः । (तविशेष:) सूकरान् हन्ति-सौकरिकः । सारङ्गान् हन्तिसारङ्गिक: । आरण्याश्चतुष्पादो मृगा उच्यन्ते।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (पक्षिमत्स्यमृगान्) पक्षी, मत्स्य, मृग प्रातिपदिकों से (हन्ति) हन्ति मारता है अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है। यहां स्वरूप, पर्यायवाची और तद्विशेषवाची शब्दों का ग्रहण किया जाता है।
उदा०-(१) पक्षी। जो पक्षियों को मारता है वह-पाक्षिक (चिड़ीमार)। (पर्याय) जो शकुनियों को मारता है वह-शाकुनिक (चिड़ीमार)। (तद्विशेष) जो मयूर-मोर को मारता है वह-मायूरिक (मोरमार)। जो तित्तिर=तीतरों को मारता है वह-तैत्तिरिक (तीतरमार)।
(२) मत्स्य । जो मत्स्य मछलियों को मारता है वह-मात्स्यिक (मछलीमार)। (पर्याय) जो मीन को मारता है वह-मैनिक (मछलीमार)। (तद्विशेष) जो शफर छोटी चमकीली मछलियों को मारता है वह-शाफरिक। जो शकुल-सोरा मछलियों को मारता है वह-शाकुलिक।
(३) मृग। जो मृगों को मारता है वह-मार्गिक । (पर्याय) जो हरिणों को मारता है वह-हारिणिक (हरिणमार)। (तद्विशेष) जो सूकर-सूअरों को मारता है वह-सौकरिक (सूअरमार)। जो सारङ्ग चितकबरे हरिणों को मारता है वह-सारङ्गिक। चौपाये जंगली जानवर मृग' कहाते हैं।
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