Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 546
________________ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५०६ ठच् (२) बहचपूर्वपदाच् ।६४। प०वि०-बह-पूर्वपदात् ५।१ ठच् १।१। स०-बहवोऽचो यस्मिँस्तद् बच्, बह्वच् पूर्वपदं यस्य तद् बहच्पूर्वपदम्, तस्मात्-बहच्पूर्वपदात् (बहुव्रीहि:)। अनु०-तत्, अस्य, कर्म, अध्ययने, वृत्तम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् बहचपूर्वपदाद् अस्य ठच् अध्ययने वृत्तं कर्म । अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थाद् बह-पूर्वपदात् प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे ठच् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थम् अध्ययने वृत्तम् अन्यत् कर्म चेत् तद् भवति। उदा०-द्वादशान्यानि कर्माण्यध्ययने वृत्तान्यस्य-द्वादशान्यिकः । त्रयोदशान्यिक: । चतुर्दशान्यिक: । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (बहूच्-पूर्वपदात्) बहुत अच् हैं जिसमें उस पूर्वपदवाले प्रातिपदिक से (अस्य) इसका अर्थ में (ठच्) ठच् प्रत्यय होता है (अध्ययने वृत्तं कर्म) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह वेदादि के अध्ययन में वृत्त उत्पन्न हुआ अन्य कर्म (क्रिया) हो। उदा०-द्वादशान्य बारह अन्य अपपाठ रूप स्खलन हैं इसके यह-द्वादशान्यिक। त्रयोदशान्य तेरह अन्य अपपाठ रूप स्खलन हैं इसके यह-त्रयोदशान्यिक । चतुर्दशान्य-चौदह अन्य अपपाठ रूप स्खलन हैं इसके यह-चतुर्दशान्यिक। सिद्धि-द्वादशान्यिक: । द्वादशान्य+जस्+ठच् । द्वादशान्य+इक् । द्वादशान्यिक+सु। द्वादशान्यिकः। ___ यहां प्रथमा-समर्थ, बहच् पूर्वपदवाले द्वादशान्य' शब्द से अस्य अर्थ में अध्ययन में उत्पन्न अपपाठ रूप कर्म अभिधेय में इस सूत्र से ठच्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ह' के स्थान में 'इक्' आदि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-त्रयोदशान्यिक,, चतुर्दशान्यिकः। अस्मै (चतुर्थी) अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक)- {हितं भक्षणम्} (१) हितं भक्षाः ।६५। प०वि०-हितम् ११ भक्षा: १।३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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