Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः अन्वय:-तत् प्रातिपदिकाद् उञ्छति ठक् ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् प्रातिपदिकाद् उञ्छतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति। भूमौ पतितस्यैकैकस्य कणस्योपादानमुञ्छ इत्युच्यते।
उदा०-बदराण्युञ्छति-बादरिक: । श्यामाकिकः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ प्रातिपदिक से (उच्छति) उच्छति='भूमि पर पड़े हुये एक-एक कण को चुगता है' अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है।
उदा०-जो बदर-बेरों को चुगता है वह-बादरिक । जो श्यामाक-सामक अन्नविशेष को चुगता है वह-श्यामाकिक।
सिद्धि-बादरिकः । बदर+शस्+ठक् । बादर्+इक। बादरिक+सु। बादरिकः ।
यहां द्वितीया-समर्थ बदर' शब्द से उञ्छति अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ठू' के स्थान में 'इक्’ आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-श्यामाकिकः ।
रक्षति-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक)
__(१) रक्षति।३३। वि०-रक्षति क्रियापदम्। अनु०-तत्, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वयः-तत् प्रातिपदिकाद् रक्षति ठक् ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् प्रातिपदिकाद् रक्षतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-समाजं रक्षति-सामाजिक: । सान्निवेशिकः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ प्रातिपदिक से (रक्षति) रक्षति रक्षा करता है अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है।
उदा०-जो समाज-मानव समूह की रक्षा करता है वह-सामाजिक। जो सन्निवेश समुदाय की रक्षा करता है वह-सान्निवेशिक ।
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