Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां द्वितीया-समर्थ 'दण्डमाथ' शब्द से धावति अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्वहतीय 'ठक' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-शौल्कमाथिक: आदि।
विशेष: (१) दण्डमाथ-यहां माथ शब्द 'पथिन्' का पर्यायवाची है। मथ्यते= विलोड्यते गन्तृभिरिति माथ: । दण्डाकारो माथ इति दण्डमाथ: । दण्ड के समान जो सरल माथ (मार्ग) है वह 'दण्डमाथ' कहाता है। शुल्कस्य माथ इति शुल्कमाथः । शुल्क (भाड़े) का जो माथ (मार्ग) है वह 'शुल्कमाथ' होता है अर्थात् जिस पर गाड़ी आदि का भाड़ा देकर चलना पड़ता है।
(२) अनुपदम्-पदस्य पश्चात-अनुपदम् । पद-पैर का निशान। पैर के निशान के पीछे-पीछे अनुपद। यहां 'अव्ययं विभक्ति०' (२।१।६) से पश्चात् अर्थ में अव्ययीभाव समास है। 'अव्ययीभावश्च' (१।१।४१) से 'अनुपदम्' शब्द अव्यय है। ठ+ठ
(२) आक्रन्दाट्ठञ् च।३८ । प०वि०-आक्रन्दात् ५।१ ठञ् ११ च अव्ययपदम्।। अनु०-तत्, ठक, धावति इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् आक्रन्दाद् धावति ठञ् ठक् च।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थाद् आक्रन्दशब्दात् प्रातिपदिकाद् धावतीत्यस्मिन्नर्थे ठञ् ठक् च प्रत्ययो भवति। आक्रन्द्यते-आतेराहयते इति आक्रन्द:, आतनामयनम् (शरणम्) उच्यते।।
. उदा०-आक्रन्दं धावति-आक्रन्दिक: (ठञ्) । आक्रन्दिक: (ठक्) । स्त्री चेत्-आक्रन्दिकी।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (आक्रन्दात्) आक्रन्द प्रातिपदिक से (धावति) दौड़ता है अर्थ में (ठञ्) ठञ् (च) और (ठक्) ठक् प्रत्यय होते हैं। आर्त्त-दुःखीजन जिसे शरण के लिये पुकारते उस स्थान को 'आक्रन्द' कहते हैं।
उदा०-जो आक्रन्द (आर्तालय) की ओर दौड़ता है वह-आक्रन्दिक (ठञ्) । आक्रन्दिक (ठक)। यदि स्त्री हो तो-आक्रन्दिकी।
सिद्धि-(१) आक्रन्दिकः । आक्रन्द+अम्+ठञ् । आक्रन्द+इक। आक्रन्दिक+सु। आक्रन्दिकः।
___ यहां द्वितीया-समर्थ 'आक्रन्द' शब्द से धावति अर्थ में इस सूत्र से ठञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। यहां नित्यादिनित्यम्' (६।१।९४) से आधुदात्त स्वर होता है-आक्रन्दिकः ।
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