Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः
४२३ अनु०-तस्य, इदमिति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबढचनटाद् इदं व्यः ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्यश्छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबहृचनटेभ्य: प्रातिपदिकेभ्य इत्यस्मिन्नर्थे ज्य: प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(छन्दोग:) छन्दोगानां धर्म आम्नायो वा-छान्दोग्यम्। (औक्थिक:) औथिकानां धर्म आम्नायो वा-औक्थिक्यम्। (याज्ञिक:) याज्ञिकानां धर्म आम्नायो वा-याज्ञिक्यम्। (
बच:) बढचानां धर्म आम्नायो वा-बाय॒च्यम्। (नट:) नटानां धर्म आम्नायो वा-नाट्यम् ।
चरणाद्धर्माम्नाययोरर्थयो: प्रत्ययो विधीयते । तत्साहचर्यान्नटशब्दादपि धर्माम्नाययोरेवार्थयो: प्रत्ययो भवति ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (छन्दोगानटात्) छन्दोग, औस्थिक, याज्ञिक, बढच, नट प्रातिपदिको से (इदम्) यह' अर्थ में (ज्य:) व्य प्रत्यय होता है।
उदा०-(छन्दोग) छन्दोगों का यह (धर्म/आम्नाय) छान्दोग्य। (औक्थिक) औस्थिकों का यह (धर्म/आम्नाय) औक्थिक्य । (याज्ञिक) याज्ञिकों का यह (धर्म/आम्नाय) याज्ञिक। (नट) नटों का यह (धर्म/आम्नाय) नाट्य।
चरण (वैदिक विद्यापीठ) वाची शब्दों से धर्म और आम्नाय (पाठ्यग्रन्थ) अर्थ में प्रत्यय होता है। यहां नट' शब्द का चरणवाची शब्दों के साथ पाठ होने से नट' शब्द से भी धर्म और आम्नाय अर्थ में प्रत्यय होता है।
सिद्धि-छान्दोग्यम् । छन्दोग+आम्+व्य । छाग्योग्+य। छाग्योग्य+सु । छान्दोग्यम् ।
यहां षष्ठी-समर्थ छन्दोग' शब्द से इदम् (धर्म/आम्नाय) अर्थ में इस सूत्र में ज्य' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-औक्थिक्यम्, आदि।
विशेष: (१) छन्दोग-सामवेद का गान करनेवाले सामवेदी ब्राह्मणों को छन्दोग' कहते हैं। छन्दोग नामक चरण का धर्म एवं आम्नाय छान्दोग्य कहाता है।
(२) औक्थिक-उद्गाता द्वारा गेय सामों के संग्रह को उक्थ कहते थे। उक्थों का निश्चय सामवेदीय चरणों की परिषदों का कर्तव्य था। उसके लिए जिस ग्रन्थ का निर्माण हुआ वह उक्थ' और उसे पढ़ने-पढ़ानेवाले लोग 'औक्थिक' कहे गये (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ३२८)।
(३) याज्ञिक-यज्ञीय कर्मकाण्ड का अध्ययन करनेवाले याज्ञिक कहलाते थे। याज्ञिक चरण का धर्म/आम्नाय याज्ञिक्य कहलाता था।
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