Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-दधित्थ-कैथा वृक्ष का अवयव वा विकार-दाधित्थ। कपित्थ-कैथा वृक्ष का अवयव वा विकार-कापित्थ। महित्थ वृक्ष का अवयव वा विकार-माहित्थ।
सिद्धि-दाधित्थम् । यहां षष्ठी-समर्थ, अनुदात्तादि प्रातिपदिक से अवयव और विकार अर्थ में इस सूत्र से 'अञ्' प्रत्यय है।
दनि तिष्ठतीति दधित्थः । यहां सुपि स्थः' (३।२।४) से क' प्रत्यय, आतो लोप इटि च' (६।४।६४) से स्था' आकार का लोप पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् (६।३।१०९) से स्था' के स्' को त्' आदेश होता है। यहां उपपद समास है अत: समासस्य' (६।१।२२०) से आन्तोदात्त स्वर होने से दधित्थ' शब्द अनुदात्तादि है-दधित्थः । ___यहां पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-कापित्थम्, माहित्थम्।
कपित्थ' शब्द 'दधित्थ' शब्द का पयार्चावाची है। इस वृक्ष के फल कपि वानरों को प्रिय होते हैं, अत: इसे कपित्थ' कहते हैं। अञ्-विकल्पः
(७) पलाशादिभ्यो वा।१३६ । प०वि०-पलाश-आदिभ्य: ५।३ वा अव्ययपदम् । अनु०-तस्य, विकार:, अवयवे, च इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य पलाशादिभ्योऽवयवे विकारे च वाऽञ् ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्य: पलाशादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्योऽवयवे विकारे चार्थे विकल्पेनाऽञ् प्रत्ययो भवति, पक्षे चाऽण् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-पलाशस्यावयवो विकारो वा पालाशम् । खादिरम् ।
पलाश। खदिर। शिशपा। स्यन्दन। करीर। शिरीष। यवास। विककत। इति पलाशादय: ।।
_ आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (पलाशादिभ्यः) पलाश आदि प्रातिपदिकों से (अवयवे) अवयव (च) और (विकार:) विकार अर्थ में (वा) विकल्प से (अञ्) अञ् प्रत्यय होता है और पक्ष में औत्सर्गिक अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-पलाश (ढाक) वृक्ष का अवयव वा विकार-पालाश । खदिर (कत्था) वृक्ष का अवयव वा विकार-खादिर।
सिद्धि-(१) पालशम् । पलाश+डस्+अञ् । पालाश्+अ। पालाश+सु। पालाशम् ।
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