Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थाभ्याम् अपमित्य-याचिताभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां निर्वृत्त इत्यस्मिन्नर्थे यथासंख्यं कक्- कनौ प्रत्ययौ भवतः ।
उदा०-(अपमित्य) अपमित्य निर्वृत्तम्- आपमित्यकम् (कक्) । ( याचितम्) याचितेन निर्वृत्तम्-याचितकम् (कन्) ।
आर्यभाषाः अर्थ- (तेन) तृतीया-समर्थ (अपमित्ययाचिताभ्याम्) अपमित्य और याचित शब्दों से (निर्वृत्ते) निर्वृत्त अर्थ में यथासंख्य (कक्कनौ) कक् और कन् प्रत्यय होते हैं ।
उदा०- - (अपमित्य) अपमित्य = प्रतिदान ( बदलना) से निर्वृत्त - आपमित्यक बदले में पाया हुआ। (याचित) याचित (मांगने) से निर्वृत्त - याचितक। मांग से पाया हुआ। सिद्धि - (१) आपमित्यकम् । अपमित्य+टा+कक् । अपमित्य +०+क | आपमित्यक+सु । आपमित्यकम् ।
यहां तृतीया-समर्थ ‘अपमित्य' शब्द से निर्वृत्त अर्थ इस सूत्र से ‘'कक्' प्रत्यय है। 'किति च' (७ 1२1११८) से अंग को आदिवृद्धि होती है।
'अपमित्य' शब्द में 'मैङ् प्रतिदाने' (भ्वा०प०) धातु से 'उदीचां माङो व्यतीहारे' (३।४।१९) से क्त्वा प्रत्यय है 'समासेऽनञ्पूर्वे क्त्वो ल्यप्' (७।१।३७ ) से क्त्वा को ल्यप् आदेश होता है। क्त्वा प्रत्ययान्त शब्द की 'क्त्वातोसुन्कसुनः' (१1१1४०) से अव्यय संज्ञा होने से 'अव्ययादाप्सुपः' (२।४।८२ ) से तृतीया विभक्ति 'टा' का लोप हो जाता है।
(२) याचितकम्। यहां तृतीया-समर्थ 'याचित' शब्द से निर्वृत्त अर्थ में इस सूत्र से 'कन्' प्रत्यय है।
संसृष्टार्थप्रत्ययविधिः
यथाविहितम् (ठक)
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(१) संसृष्टे | २२ |
वि०-संसृष्टे ७।१।
अनु०-तेन, ठक् इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-तेन प्रातिपदिकात् संसृष्टे ठक् ।
अर्थः-तेन इति तृतीयासमर्थात् प्रातिपदिकात् संसृष्ट इत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति । संसृष्टम् =एकीभूतम्, अभिन्नमित्यर्थः ।
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