Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः
४५३ यहां षष्ठी-समर्थ 'आमलकी' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में फल अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का लुक्-विधान किया गया है। यहां नित्यं वृद्धशरादिभ्यः' (४।३।१४२) से आमलकी शब्द से उक्त अर्थ में 'मयट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से उसका लुक् हो जाता है और 'लुक् तद्धितलुकि' (१।२।४९) से तद्धित प्रत्यय के लुक् हो जाने पर स्त्रीप्रत्यय का भी लुक् हो जाता है।
(२) कवलम् बदरम् । यहां 'अनुदात्तादेश्च (४।३।१३८) से विहित 'अञ्' प्रत्यय का लुक् होता है।
विशेष: फलित वृक्ष का फल उसका अवयव और विकार भी माना जाता है जैसे कि पल्लवित वृक्ष का पल्लव (पत्ता) उस वृक्ष का अवयव और विकार दोनों होता है। अण्
(३०) प्लक्षादिभ्योऽण।१६२। प०वि०-प्लक्ष-आदिभ्य: ५।३ अण् १।१। स०-प्लक्ष आदिर्येषां ते प्लक्षादयः, तेभ्य:-प्लक्षादिभ्यः (बहुव्रीहि:)। अनु०-तस्य, विकारः, अवयवे, च, फले इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य प्लक्षादिभ्योऽवयवे विकारे चाऽण, फले।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्य: प्लक्षादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्योऽवयवे विकारे चार्थेऽण् प्रत्ययो भवति, फलेऽभिधेये ।
उदा०-प्लक्षस्यावयवो विकारो वा-प्लाक्षम्। न्योग्रोधस्यावयवो विकारो वा-नैयग्रोधम् ।
प्लक्ष । न्यग्रोध। अश्वत्थ। इगुदी। शिग्रु। कर्कन्धु । बृहती। इति प्लक्षादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (प्लाक्षादिभ्यः) प्लक्ष आदि प्रातिपदिकों से (अवयवे) अवयव (च) और (विकार:) विकार अर्थ में (अण्) अण् प्रत्यय होता है (फले) यदि वहां फल अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-प्लक्ष (पिलखण) का अवयव वा विकार-प्लाक्ष (फल)। न्योग्रोध (बड़) का अवयव वा विकार-नैयग्रोध (फल)।
सिद्धि-(१) प्लाक्षम् । प्लक्ष+डस्+अण् । प्लाश्+अ। प्लाक्ष+सु। प्लाक्षम्।
यहां षष्ठी-समर्थ 'प्लक्ष' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में तथा फल अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार
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