Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः
४०५ सिद्धि-छागलेयिनः । छगलिन्+टा+ढिनुक् । छागलिन् एम् इन् । छागल्+एयिन्। छागलेयिन्+जस् । छागलेयिनः ।
यहां तृतीया-समर्थ 'छगलिन्' प्रातिपदिक से प्रोक्त अर्थ में तथा अध्येता-वेदिता विषय में एवं छन्द अभिधेय में इस सूत्र से दिनुक्' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से द' के स्थान में 'एय्' आदेश और 'किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि होती है। 'नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (इन्) का लोप होता है।
विशेष: छगली-ये वैशम्पायन आचार्य के अन्तेवासी कलापी नामक आचार्य के चार शिष्यों में से एक थे। ये उच्चकोटि के विद्वान् और एक चरण (वैदिक विद्यापीठ) के संस्थापक थे। णिनिः
(१०) पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनटसूत्रयोः।११०। प०वि०-पाराशर्य-शिलालिभ्याम् ५ ।२ भिक्षु-नटसूत्रयोः ७।२।
स०-पाराशर्यश्च शिलाली च तौ पाराशर्यशिलालिनौ, ताभ्याम्पाराशर्यशिलालिभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । भिक्षुश्च नटश्च तौ भिक्षुनटौ, तयो:-भिक्षुनटयो: । भिक्षुनटयो: सूत्रे इति भिक्षुनटसूत्रे, तयो:-भिक्षुनटसूत्रयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितषष्ठीतत्पुरुषः)।
___ अनु०-तेन, प्रोक्तम् छन्दसि इति चानुवर्तते, तथा प्रयोगबलाण्णिनिरित्यनुवर्तते न ढिनुक्।
अन्वय:-तेन पाराशर्यशिलालिभ्यां प्रोक्तं णिनिर्भिक्षुनटसूत्रयोश्छन्दसि।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थाभ्यां पाराशर्यशिलालिभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां प्रोक्तमित्यस्मिन्नर्थे णिनि: प्रत्ययो भवति यथासंख्यं भिक्षुनटसूत्रयोरभिधेययो:, यत् प्रोक्तं छन्दश्चेत् तद्भवति।
उदा०-(पाराशर्य:) पाराशर्येण प्रोक्तं भिक्षुसूत्रमधीयते-पाराशरिणो भिक्षवः। (शिलाली) शिलालिना प्रोक्तं नटसूत्रमधीयते-शौलालिनः।
आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (पाराशर्यशिलालिभ्याम्) पाराशर्य, शिलालिन् प्रातिपदिकों से (प्रोक्तम्) प्रोक्त अर्थ में (णिनि:) णिनि प्रत्यय होता है (भिक्षुनटसूत्रयोः) यथासंख्य भिक्षुसूत्र और नटसूत्र अर्थ में, (छन्दसि) जो प्रोक्त है यदि वह छन्द हो।
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