Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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__ चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः उदा०-गाय॑स्य छात्रो गार्गीयः । गार्ग्य ऋषि का शिष्य-गार्गीय। वात्स्यस्य छात्रो वात्सीय: । वात्स्य ऋषि का शिष्य-वात्सीय । शालायां भव: शालीयः । शाला घर में रहनेवाला-शालीय (गृहस्थ)। मालायां भवो मालीयः। माला में रहनेवाला-मालीय (पुष्प)।
सिद्धि-गार्गीय: । गाये+डस्+छ। गाये+ईय। गार्ग+ईय। गार्गीय+सु । गार्गीयः ।
यहां 'गापू' शब्द की वृद्धिर्यस्याचामादिस्तवृद्धम् (१।१।७२) से वृद्ध' संज्ञा है। वृद्धसंज्ञक गार्य' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से छ' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से छु' के स्थान में 'ईय' आदेश होता है। 'यस्येति च' (७।४।१४८) से अंग के अकार का लोप और 'आपत्यस्य च तद्धितेऽनाति' (६।४।१५१) से यकार का लोप होता है। ऐसे ही- 'वात्सीय:' आदि। ठक्+छस्
(२४) भवतष्ठक्छसौ।११४। प०वि०-भवत: ५।१ छक्-छसौ १।२। स०-ठक् च छस् च तौ-ठक्छसौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । अनु०-शेषे, वृद्धात् इति चानुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव०वृद्धाद् भवत: शेषे ठक्छसौ।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् वृद्धसंज्ञकाद् भवत्-शब्दात् प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु ठक्छसौ प्रत्ययौ भवतः।।
उदा०-(ठक्) भवतोऽयं भावत्क: । (छस्) भवत इदं भवदीयम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (वृद्धात्) वृद्धसंज्ञक (भवतः) भवत् प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थों में (ठक्छसौ) ठक् और छस् प्रत्यय होते हैं।
उदा०-(ठक्) भवतोऽयं भावत्क: । आपका यह-भावत्क। (छस्) भवत इदं भवदीयम् । आपका यह-भवदीय।
सिद्धि-(१) भावत्कः । भवत्+डस्+ठक् । भावत्+क। भावत्क+सु। भावत्कः ।
यहां षष्ठी-समर्थ, वृद्धसंज्ञक 'भवत्' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से ठक्' प्रत्यय है। इसुसुक्तान्तात्कः' (७।३।५१) से ' के स्थान में 'क्' आदेश होता है। किति च (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि होती है। 'भवत्' शब्द का त्यदादिगण में पाठ होने से त्यदादीनि च' (१।१।७३) से इसकी वृद्ध संज्ञा है।
(२) भवदीयः । भवत्+डस्+छस् । भवत्+ईय। भवद्-ईय । भवदीय+सु । भवदीयः ।
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